Sunday, September 4, 2016

गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है !

गणेश चतुर्थी महत्व :

        भारतीय संस्कृति के अनुसार संस्कारों में किसी कार्य की सफलता हेतु पहले उसके मंगला चरण या फिर पूजा देवों के वंदन की परम्परा रही है | सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की वंदना व अर्चना का विधान है | इसलिए धर्म में सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की पूजा से ही किसी कार्य की शुरुयात होती है | श्रीगणेश पूजा अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी है । चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट में पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो । जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है । पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्र आसान में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धुप, दीप, कपूर, लाल चंदन, आदि एकत्रित कर क्रमशः पूजा करनी चाहिए । भगवान श्रीगणेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए । उन्हें शुद्र स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए ।

     

         श्रीगणेशोत्सव की महारष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, आदि स्थानों में बड़ी ही धूम धाम होती है | भक्तगत यह ध्यान देते है की किसी भी पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवताओं की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाता है | किन्तु श्री लक्ष्मी और श्रीगणेश का विसर्जन नहीं किया जाता है | इसलिए श्रीगणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करे, किन्तु उन्हें अपने निवास स्थान में श्री लक्ष्मी जी सहित रहने के लिए नियंत्रित करनी चाहिए | पूजा के उपरांत क्षमा प्रार्थना करें सभी अतिथि व भक्तो का व्यवहार स्वागत करनी चाहिए | और पूजा कराने वाले ब्राम्हण को संतुष्ट कर यथा विधि पारिश्रमिक दान आदि देनी चाहिए | उन्हें पप्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर दीर्घायु, आरोग्यता, सुख, समृद्री, धन-ऐश्वर्य आदि को बढाने के योग्य बनें | श्रीगणेश भगवान को मोदक लड्डू अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद भी चाहिए | श्रीगणेश स्त्रोत से विशेष फल की प्राप्ति होती है | श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नंदी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोडशोपचार विधि से करना चाहिए | व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें | यह हानिप्रद सिद्र हो सकता है | श्रीगणेश का ध्यान करते हुए शुद्र व सात्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए |

  • श्रीगणेश अनेक नामों से विख्यात विग्नेश्वर, विघ्न विनायक, रिद्धि के दाता भगवान गणेश सभी कार्यों में प्रथम पूजनीय है | इस से सभी परिचित है | 
  • तिथिषा वाहिंकौ गौरी गनेशोहिर्गुहो रवि: || वसुदुर्गंतको विश्वे हरी: काम: शिव: शशि: ||
  • प्रतिपदा तिथियों के अधिष्ठता क्रमश: इस प्रकाश है | तिथि तथा उनके स्वामी | अग्नि ब्रह्म गौरी गणेश सर्प कर्तिकेया सूर्य वसु दुर्गा काल विश्वेदेवा विष्णु कामदेव शिव चंद्रमा |
  •  चंद्र दर्शन सभी चतुर्थी पर, विशेष रूप से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को निषिध माना जाता है | शास्त्रों व समाज में प्रचलित है की इस दिन चंद्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है |
  • पुराणों में उल्लेख मिलता है की भगवान् कृष्ण को भी मिथ्या कलंक लगा था | द्वारिकवासी सत्राजित को सूर्य से एक मणि प्राप्त हुई. भगवान कृष्ण भी उस मणि को देख कर आकर्षित हुए थे | उन्होंने तो मजाक में यहाँ तक कह दिया था की यह मणि तो मुझे भी बहुत पसंद है |  कुछ समय के पश्चात सत्राजित को यह शंका हो गयी की भगवान कृष्ण ने ही वह मणि ली होगी. ऐसा मिथ्या कलंक भगवान को भी लगा |
  • दर्शन शास्त्र में कोई भी कार्य अकारण नहीं होता हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने इस बात पता लगाया की ग्रहों की स्तिथि के अनुशार ही व्यक्ति का मन (मुड) बदलता रहता है |
  • ज्योतिष की गणना के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सूर्य के जो त्रिभुज कक्षा बनती है उसे षडाषटक, नवपंचम और द्रविरद्वादश दोष बनता है | जिस कारण भी इस दिन चंद्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगना स्वाभाविक है क्योकि हमारा मन और आत्मा दोनों पर कंट्रोल नहीं होता |                                                                                                                                                   यह आपको पढ़कर अच्छा लगा हो तो अपने मित्र या ग्रुप में अवश्य शेयर करे | स्वास्थ्य के लिए अधिक    जानकारी  www.jangaltips.blogspot.in  पे क्लिक करो या गूगल पर टाइप करो | यदि आपके  पास      स्वास्थ्य के बारे में अधिक जानकारी है तो हमारी                                                             E-mail Id है : jangaltipsin2015@gmail.com पर भेज सकते है Thanks.

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