Thursday, January 26, 2017

पोलियो क्यों होता है और कारण क्या है ?

पोलियो जानकारी :

           पोलियो की बिमारी एक वायरस के द्रारा फेल जाती है | वायरल एक बहुत ही सुक्ष्म जिव होता है | पोलियो क्या है यह आम लोगों को समझ में नहीं आता है । यह दो बूंद जिंदगी के विज्ञापन तो हम सबको अच्छे लगते है । चलिए तो इसे ही जानते है । पोलियो नफेंटाइल पैरालिसिस या एक्यूट एंटिरीयल पोलियोमाइलिटीस का दुसरा नाम है | यह महामारी में होता है लेकिन हर समय मौजूद रहता है | हालांकि यह अक्सर बच्चों को अपना शिकार बनाता है | पोलियो बड़ी संख्या में लोगों को होता है और यह बीमारी किसी को भी हो सकता है |

          पोलियो अलग-अलग किस्म के वायरसों से होता है | वायरस उस फ़िल्टर को भी पार कर जाता है जो बैक्टीरिया को भी रोक लेता है | वायरस जीवित कोशिका में ही जीवित रहता है | पोलियो किसी भी वायरस के जिस्म में प्रवेश कर सकता है | यह नर्व ब्लड के जरिए या स्पाइनल कोर्ड और ब्रेन तक पहुँच जाता है | इस तरह स्पईनल कोर्ड के ग्रे मैटर की कोशिकाओं में उसका विकास होने लगता है | जब इन नर्व कोशिकाओं पर सुजन आ जाती है और वह बीमारी हो जाती है | जिन में मांसपेशियाँ को यह नियंत्रित करती है वह काम बंद कर देती हैं | इस तरह उन पर फालिज गिर जाता है | अगर नर्व ठीक हो जाएँ तो मांसपेशियाँ फिर काम कर सकती हैं | लेकिन अगर वायरल नर्व कोशिकाओं को मार देता है तो इन नर्व से जुडी मांसपेशियाँ हमेशा के लिए अपंग हो जाती हैं | पोलियो मुख्य रूप से छोटे बच्चों को जिनकी उम्र 1 वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है | ज्यादातर बच्चों को अधिक प्रभावित करता है | यह रोग मुख्य रूप से एक प्रकार के वायरस के कारण होता है जो की नवजात शिशुओं या 5 वर्ष तक के बच्चों के शरीर में प्रवेश कर जाता है और उनके पैरों को कार्य करने योग्य नहीं छोड़ता | लेकिन यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है | पोलियो वायरल द्वारा उत्पन्न संक्रमण है जो एक व्यक्ति से दुसरे में फैलता है यह अत्यंत संक्रमण होता है | यह शरीर में मुंह द्वारा प्रविष्ट होता है और आँतों में वृद्धी करता है | यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिसमे लकवा ही सकता है | यां मुख्य: पांच वर्ष से छोटे बच्चों में प्रभाव डालता है | इसे पोलियो, बच्चों का लकवा और पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम भी कहा जाता है | इसमें आक्रांत मांसपेशियाँ स्थायी रूप से पक्षघातग्रस्त हो जाती है | इस रोग के मृदु आक्रमण के अंतर्गत रीढ़ की हड्डी से या एक तरफ शरीर का झुकाव हो जाता है जिसे पार्श्वकुब्जता कहते है या आगे की तरफ झुकाव हो जाता है जिसे कुब्जता कहते हैं | आक्रांत भाग की हड्डियाँ सुचारू सूप से नहीं बढ़तीं तथा हाथ पैर की हड्डियां टेढ़ी हो जाती है | मांसपेशियाँ अंत में अत्यधिक कमजोर हो जाती हैं | यह वायरस बच्चों में विकलांगता पैदा कर देता है | इस रोग से ग्रस्त बच्चे खड़े होकर नहीं चल पाते और वे अपने हाथ से भी कार्य करने में भी असमर्थ हो जाते हैं | यह मुख्य रूप से बच्चों को ही अपना शिकार बनाता है और इसलिए इसे शिशुओं का लकवा या बाल पक्षाघात भी कहा जाता है |

पोलियो के उपचार और कारण :-

       पोलियो की नियमित्त एक प्रकार की टिका ( vaccine ) का आविष्कार किया है जिसका अंत: पेशी इंजेक्शन के रूप में प्रयोग करते हैं | अन्य उपचार के अंतर्गत खाद्य एवं पेय पधार्थो को माक्खियों एवं इसी प्रकार के अन्य जीवों से दूर रखना चाहिए और इसके लिए D.D.T. का प्रयोग अत्यंत लाभकारी है | स्कूल में तथा बोर्डिग हाउस में अधिकतर बच्चे आक्रांत होते है इसके लिए उनका किसी भी प्रकार से प्रुथक्करण आवश्यक है | रोग ग्रस्त बालक को ज्वर उतरने के बाद कम से कम तीन सप्ताह तक अलग रखना चाहिए | उसके मल मूत्र तथा शरीर से निकले अन्य उपसर्ग की सफाई रखना चाहिए | अन्य ओषधिजन्य उपचार के लिए किसी योग्य चिकित्सक की राय लेना उत्तम है | पोलियो के जो मुख्य रूप से वायरस के कारण फैलता है | इस वायरस को विज्ञान की भाषा पाउलिवाइरस के नाम से जाना जाता है | ज्यादातर वायरस युक्त भोजन के सेवन से यह रोग होता है | दूषित भोजन खाने से यह वायरस शरीर में सिर तक तक पहुँच जाता है जिसके कारण सिर की कोशिकायें नष्ट होने लगती हैं | यह वायरस श्वास तंत्र से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है | यह वायरस स्पाइनल कोर्ड पर संक्रमण करके वहां पर सुजन पैदा कर देता है | इस सुजन के कारण बच्चे के हाथ और पैर कार्य करना बंध कर देते है | इसके अलावा गर्भवती महिला को यदि उचित प्रोटीन युक्त भोजन नहीं मिलता तो उसके बच्चे को भी पोलियो हो सकता है |
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Monday, January 23, 2017

२६ जनवरी क्यों मनाया जाता है इसी दिन परेड और कार्यक्रम कैसे होता है ?

२६ जनवरी निबंध :

          भारत एक राष्ट्रीय पर्व जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है | इसी दिन सन 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था | पहली गणतंत्र दिवस की परेड 1950 में प्रदर्शित की गयी थी जब भारत का पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था | भारतीय राष्ट्रपति के पहुँचने के बाद परेड शुरू होती है | परेड से पहले भारत के प्रधानमंत्री इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर पुष्प अर्पित करके भारत के लिए अपने जीवन का बलिदान करने वाले भारतीय जवानों को श्रधांजलि देते हैं | और भारत के राष्ट्रपति राष्ट्रिय ध्वज को फहराते हैं |


          हर साल भारत में दो-चार राष्ट्रिय पर्व मनाये जाते हैं | 26 जनवरी के दिन मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस उन सभी में सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पर्व या उत्सव है | और हमारे देश 15 अगस्त सन 1947 के दिन लगभग दो सताब्दी तक परतंत्रता की यातनाएं भोगते रहने और अनेक प्रकार के त्याग और बलिदान करने के बाद कहीं जाकर भारत देश स्वतंत्र हुवा था | 26 जनवरी को पूरा भारत रिपब्लिक डे मनाया जाता है | राजपथ पर उस दिन भारत के राष्ट्रपति तिरंगा फहराते है लेकिन क्या आप जानते है यह 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है क्योंकि पहली बार राष्ट्रीय ध्वज कहां फहराया था ? हमारे नेता डोमिनन स्टेटस के पक्ष में थे | जहा यूके का मोनार्च ही भारतीय संविधान का अध्यक्ष होगा | साल 1927 के दरमियान भगत सिंह और हिंदुस्तान रिपिब्लिक एसोशियशन की भारतीय राजनीती में मांग बढ़ रही थी | कांग्रेस से अलग भगत सिंह और उनकी फौज ने भारत की पूरी आजादी की बात राखी | अब इससे इंडियन नेशनल कांग्रेस के जो युवा नेता थे सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरु वे भी प्रभावित हो गए | उन्होंने कांग्रेस से मांग की वे भी पूरी आजादी की मांग करे, लेकिन उनकी ये आवाज सुनी नहीं गई |  दिसंबर 1928 में आईएनसी ने डोमिनन स्टेटश की मांग करते हुए एक प्रस्ताव लाइ, और ब्रिटिश सरकार को एक साल का समय दिया ब्रिटिश ने इस विचार को नकार दिया, ये कहते हुए भारत डोमिनन स्टेटस के लिए अभी तैयार नहीं हैं | अब इससे कांग्रेस नाराज हो गई | लाहौर में 1929 में एक सेशन के दौरान नेहरु को अध्यक्ष चुन लिया गया | और कांग्रेस ने डोमिनन स्टेट्स से अलग पूर्ण स्वराज के लिए वोट किया | इसके बाद एक प्रस्ताव पारित हुआ की 1930 में जनवरी के दिन आखिर रविवार को स्वतंत्रा दिवस के रूप में मनाया जाए | जनवरी का आखिर रविवार 1930 में 26 तक को पड़ा | इस दिन जवाहर लाल नेहरु ने लाहौर में रवि नदी के किनारे तिरंगा फहराया | इसके बाद भारत ने 26 जनवरी 1930 में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया लेकिन ब्रिटिश अभी भारत में ही थे | 15 अगस्त 1947 से पहले जब भारत को आजादी मिली, हमारी संविधान सभा जिसका गठन 1946 में हो गया था और हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 तक तैयार हो गया था तब  जो नेता थे उनहोंने दो महीने और रुकने का निर्णय लिया ऐसे में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है |

गणतंत्र दिवस के ही दिन परेड का कार्यक्रम होता है :-

         भारत में गणतंत्र दिवस हर साल एक बड़ी ही और भव्य गणतंत्र दिवस परेड को नई दिल्ली में राजपथ, इंडिया गेट पर आयोजित करके मनाया जाता है | वार्षिक रूप से 26 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण के बाद गणतंत्र दिवस परेड की जाती है | ये गतिविधि भारतीय गणतंत्र दिवस के उत्सव का प्रमुख आकर्षण होती है जो आमतोर पर बीटिंग रिट्रीट समारोह के होने तक अगले 3 दिनों तक चलती है | ये भारतीय सरकार द्वारा सुरक्षा क्षमता भारत की सांस्कृतिक और सामजिक विरासत को पूरी दुनिया के सामने दिखाने के लिए आयोजित की जाती है | भारत की गणतंत्र दिवस की परेड दुनिया की सबसे प्रसिद्र परेडों में से एक है जिसमें 25 से अधिक चलते और घुड़सवार दल वाले, लगभग 20 सैन्य बैंड, विभिन्न सैन्य वाहन, 30 विमान, 30 सांस्कृतिक झाँकी, राज्यों के अनुसार सांस्कृतिक झांकी और 1200 स्कूल के बच्चे शामिल होते हैं |

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Friday, January 20, 2017

तम्बाकू एव गुटखा के नुकसान और कैसे छोड़ने की दवा क्या है ?

तम्बाकु और गुटखा : 

          पुरे वॉल्ड में लाखों करोडो लोग तम्बाकु एवं अन्य मामुली बात पार्लर कानशा कहते है | जो सायद उन्हें एक मामूली बात लगती है पर ऐसे करके अपने पूरा परिवार और बच्चो को धोखा देते है | देश में हर साल लाखो लोग तम्बाकू से होने वाली विभिन्न बीमारियों का शिकार होते है | बहुत से लोग नशा छोड़ना चाहते है पर उनसे छुटता नहीं है | बार बार कहते है हमें मालूम है ये गुटखा या तम्बाकू खाना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है | महसूस होता है यह बीडी, सिगरेट, शराब, गुटखा और तम्बाकू यह पीना अच्छा  नहीं है लेकिन तलब हो जाती है तो क्या करना चाहिए |


          धुम्रपान की आदत छोड़ना सबसे बड़ी चुनोती है | अन्य व्यसनों की तरह धुम्रपान की आदत छोड़ने के कारण शरीर में शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएं होती है | हम में से बहुत कम लोग यह जानते है की बिना किसी दवा के उपयोग के हम इस व्यसन से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं | अधिकतर गतिविधियों के लिए एक योजना तैयार करना और फिर इसका पालन करना सफलता के लिए सबसे बेहतर तकनीक है | तम्बाकू छोड़ने की एक व्यापक पूरी तरह से सुनियोजित योजना बनाकर उस पर अमल करने से पहले आपकी लत के सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए | धुम्रपान बंद करने के फायदे लगातार २० वर्ष तक सिलसिलेवार धुम्रपान करने वालों के सिगरेट छोड़ देने पर कई फायदे है | २० मिनिट में रक्तचाप सामान्य ८ घंटे में रुधिर में आक्सीजन की मात्रा सामान्य २४ घंटे में हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है | ४८ घंटे में तंत्रिका विकसित होने लगती है, १४ दिन में रक्त प्रवाह सामान्य होने लगता है | ३ महीने में फेफड़े की कार्यक्षमता सामान्य होने लगती है, १-९ महीने में खांसी थकान व सांस सामान्य होने लगती है | एक साल में हदय रोग का खतरा ५० प्रतिशत कम हो जाता है और १० साल में कैंसर का खतरा ५० प्रतिशत कम हो जाता है |  आप धुम्रपान करने वाले किस प्रकार के व्यक्ति हैं | आपको सिगरेट की आवश्यकता कब पड़ती है और क्यों इससे आपको उन सलाहों, तकनीकों और उपचारों को पहचानने में सहायता मिलेगी जो आपके लिए सबसे अधिक लाभदायक हो सकता हैं |  जैसे ही आप धुम्रपान बंध करेंगे अतिरिक्त कैलोरीज बर्न करने के कारण आपका वजन बढना भी रुक जाएगा | दोस्त के साथ शर्त लगायें आप अपने दोस्त के साथ शर्त लगा सकते हैं तथा धुम्रपान छोड़ने की एक तिथि निर्धारित कर के उस समय तक धुम्रपान छोड़ सकते हैं | जब भी आप बाहर जाएँ पानी या जूस पियें | कुछ लोगों ने यह देखा है की सिर्फ पेय पदार्थ में परिवर्तन करके आप सिगरेट की आदत को कम कर सकते हैं |

गुटखा तम्बाकू आदत को छोड़ने का विधि -

  • सुखी आवले के टुकड़े, इलायची, सोफ़ और हरद के मिलाकर अपने पास रख लेनी चाहिए | जब भी नशा करने की तलब लगे तो इन टुकडो को मुंह में रख ले और चबाते रहे | इनसे तलब तो कम होगी ही साथ ही खट्टी डकार, भूख ना लगने और पेट फूलते की मुसीबत ( प्रॉब्लम ) में भी आराम मिलता है |
  • आपको बीडी सिगरेट की तलब न आए गुटखा खाने की तलब न लगे | शराब पिने की तलब न गले इसके लिए बहुत अच्छे दो उपाय है जो आप बहुत आसानी से कर सकते है | पहला ये जिनको बार बार तलब लगती है जो अपनी तलब पर नियंत्रण नहीं कर पाते इसका मतलब उनका मन कमजोर है ! तो पहले मन मजबूत बनाओ !
  • मसाला, शराब या गुटखा खाने की आदत को छोड़ने के लिए १०० ग्राम सौंफ, १० ग्राम अजवाइन और थोडा सेंधा नमक लेकर उसमें दो नींबुओं का रस निचोड़ के तवे पर सेंक लें | यह मिश्रण जेब में रखे | जब भी उस घटक पान मसाले की याद सताए, जेब से थोडा सा मिश्रण निकाल कर मुँह में डालें | इससे आपका पाचनतंत्र भी ठीक रहेगा और रक्त की शुद्री भी होगी | आपका निश्चय और संकल्प मजबूत हो तो कोई चीज असम्भव नहीं है |
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Friday, January 13, 2017

मकर संक्रांति क्या है और इस दिन क्यों पतंग उड़ाते है ?

मकर संक्रांति :

         मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है इसलिए मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते है | भारत में प्रतिवर्ष कई तरह के त्यौहार मनाएँ जाते हैं और उन त्योहारों के संबंध में कई तरह की मान्यताएं भी प्रचलित होती है | जैसे दिवाली पर पटाखें जलाना, तो होली पर रंग खेलना | ठीक इसी तरह से मकर संक्रांति पर भी पतंग उड़ाई जाती है | हिन्दू धर्मं में माह को दो पक्षों में बाँटा गया है | १. कृष्ण पक्ष और २. शुक्ल पक्ष | ठीक इसी तरह से वर्ष को भी दो अयनों में बाँटा गया है | उत्तरायण और दक्षिणायण | यदि दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पूर्ण हो जाता है |



           मकर संक्रांति पौष मास में जब सूर्य धनु राशी को छोड़कर मकर राशी राशी में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति त्यौहार मनाया जाता है और सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है | यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है | वैसे तो यह त्यौहार जनवरी माह की 14 तारीख को मनाया जाता है लेकिन कभी-कभी यह त्यौहार 12, 13, 14, या 15 जनवरी में से किसी एक दिन ही मकर राशि में प्रवेश करता हैं | उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतिक माना जाता है | इसलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्रधा, अर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों को विशेष महत्व दिया जाता है | हमारे देश में मकर संक्रांति के पर्व को कई नामों से जाना जाता है | पंजाब और जम्मूकश्मीर में इसे लोहड़ी के नाम से बहुत ही बड़े पैमाने पर जाना जाता है | लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति के एक दिन पर्व मनाया जाता है | जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं और स्त्री तथा पुरुष सज-धजकर नए-नए वस्त्र पहनकर एकत्रित होकर उस जलते हुए अलाव के चारों और भांगड़ा नृत्य करते हैं और अग्नि को मेवा, तिल, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं | संक्रांति यानि सम्यक क्रांति इस नामकरण के नाते तो मकर संक्रांति सम्यक क्रांति का दिन है । एक तरह से सकारात्मक बदलाव के लिए संकल्पित होने का दिन । ज्योतिष व नक्षत्र विज्ञान के गणित के मुताबिक कहें तो मकर संक्रांति ही वह दिन है जब सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है और एक महीने मकर राशि में रहता हैं । तत्पश्चात सूर्य अगले पांच माह कुंभ, मीन, मेष, वृक्ष, और मिथुन राशि में रहता है । इसी कारण मकर संक्रांति पर्व का एक नाम उत्तरायणी भी है ।

 मकर संक्रांति के दिन क्यों खातें है तिल और गुड :-

          भारत में हर त्यौहार पर विशेष पकवान बनाने व खाने की परंपराएं भी प्रचलित हैं | श्रुंखला में मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से तिल व गुड के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है | कहीं पर तिल व गुड के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाकर तिल व गुड का सेवन किया जाता है | तिल व गुड की जगह भी लोग खूब पसंद करते है लेकिन मकर संक्रांति के पर्व पर तिल व गुड का ही सेवन क्यों किया करते है इसके पिसे भी वैज्ञानिक आधार है | सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है तब तिल व गुड के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं, क्योंकि तिल में तेल की प्रचुरता रहता है जिसका सेवन करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में तेल पहुंचता है और जो हमारे शरीर को गर्माहट देता है |  इसी प्रकार गुड की तासीर भी गर्म होती है | तिल व गुड को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं वह सर्दी के मौसम में हमारे शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं | यही कारण है की मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं |

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Thursday, January 5, 2017

अस्थमा क्या है और घरेलु उपचार कैसे करना हैं ?

अस्थमा (Asthma) :

            अस्थमा कहे या हिंदी में दमा ये श्वसन तंत्र की बीमारी है जिससे कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है | क्योंकि श्वसन मार्ग में सूजन आ जाने के कारण वह संकुचित हो जाती है | इस कारण छोटी-छोटी सांस लेनी पड़ती है | छाती में कसाव जैसा महसूस होता है और सास फूलने लगती है और बार-बार खांसी आती है | इस बीमारी के होने का विशेष उम्र बंधन नहीं होता है | किसी भी उम्र में कभी भी यह बीमारी हो सकता है | दमा का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण जरुर किया जा सकता है | दम (अस्थमा ) से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके | अस्थमा तब तक ही नियंत्रण में रहता है जब तक मरीज जरुरी सावधानियां बरत रहा है |

             अस्थमा एक गंभीर बीमारी है जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है | श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं अस्थमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दिवार में सुजन होता है | यह सुजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह प्रतिक्रिया करता है | जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाता है | इससे खांसी, नाक बजना छाती का कड़ा होना रात और सुबह में सांस लेने में तफलीफ आदि है और  लक्षण पैदा होते हैं | अस्थमा एक अथवा एक से अधिक पदार्थो के प्रति शारीरिक प्रणाली की अस्वीकृति है | अस्थमा के कारण - अस्थमा का एटैक आने के बहुत सारे कारणों में वायु का प्रदुषण भी एक कारण है | अस्थमा के अटैक के दौरान वायु मार्ग के आसपास के मसल्स में कसाव और वायु मार्ग  में सुजन आ जाता है | जिसके कारण हवा का आवागमन अच्छी तरह से नहीं हो पाती है | दमा के रोगी को साँस लेने से ज्यादा साँस छोड़ने में मुश्किल होती है | एलर्जी के कारण श्वसनी में बलगम पैदा हो जाता है जो कष्ट को और भी बढ़ा देता है | एलर्जी के अलावा भी दमा होने के बहुत से कारणों में से कुछ इस प्रकार है १. घर के धुल भरा वातावरण और घर के पालतू जानवर बाहर का वायु प्रदुषण आदि है | २. धुम्रपान अधिक मात्रा में शराब पीना और व्यक्ति विशेष का कुछ खाद-पदार्थो से एलर्जी महिलाओं में हार्मोनल बदलाव कुछ विशेष प्रकार के दवाएं | ३. सर्दी के मौसम में ज्यादा ठंड एलर्जी के बिना भी दमा का रोग शुरू हो सकता है | सिर भारी - भारी जैसा लगता है | जोर-जोर से साँस लेने के कारण थकावट महसूस होती है |

दमा के रोगी के लिए घरेलु उपचार :-

  • दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए | इसके बाद १ सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास रखना चाहिए | फिर इसके बाद २ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए | इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए |
  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के पानी की भाप लेनी चाहिए | इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है | दमा रोग ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी है जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है | यह आसन इस प्रकार है योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान, कुर्मासन, तथा भुजांगासन आदि |
  • जैसा की पहले ही बताया जा चूका है की दमा का कोई इलाज नहीं होता है | लेकिन दवा या कुछ घरेलु उपायों के द्वारा इसके कष्ट को कम किया जा सकता है | एक लीटर पानी में डॉन बड़ा चम्मच मेथी के दाने डालकर आधा घंटे तक उबालें, उसके बाद इसको छान लें | दो बड़े चम्मच अदरक का पेस्ट एक छलनी में डालकर उस रस निकाल कर मेथी के पानी में डालें | उसके बाद एक चम्मच शुद्र शहद इस मिश्रण में डालकर अछि तरह से मिला लें | दमा के रोगी को यह मिश्रण प्रतिदिन सुबह पीना चाहिए | 
  • मौसम में ठंड के कारण दमा का रोग भयंकर रूप धारण करता है | इसलिए इस समय इन घरेलु उपचारों के सहायता से दमा रोग के कष्ट को तो कुछ हद तक काबू में किया जा सकता है साथ ही कुछ बातों पर ध्यान से दमा रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है | १. इन्हेलर को अपने पास रखें २. घर को हमेशा साफ़ रखे ताकि धुल से एलर्जी की संभावना न हो ३. मुँह से साँस न ले क्योंकि मुँह से साँस लेने पर ठंड भीतर चला जाता है जो रोग को बढ़ने में मदद करता है |
  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ़ रखना चाहिए तथा कब्ज नहीं होने देना चाहिए | धुम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ नहीं रहना तथा धुम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है | 
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गर्मी के बाद बारिश का शरीर को क्या लाभ मिलती है |

 बारिश के लाभ :           गर्मी के बाद बारिश बहुत ही सुकून देती है | बारिश का इंतज़ार हर किसी को रहता है | बारिश के पानी का लाभ सभी को ...