Wednesday, December 30, 2015

खुजली और खाज : कई कारण इलाज कैसे करें

खुजली और खाज :
          छोटी-छोटी शरीर में पीपदार फुंसियाँ हो जाती है, इनमे खुजली होती है और खुजाने पर फैल जाती है लाल पड़ जाता है | सुखी खुजली में खुजलाहट होती है पर पीप नहीं निकलती है इसे सुखी खाज कहते हैं | खुजाने से त्वचा सफ़ेद और रुखी हो जाती है | दूसरे प्रकार की खुजली में दाने से निकलते हैं  त्वचा लाल पड़ जाती है उससे निकलने वाले पानी या पिप से दुसरो को भी खाज का रोग हो जाता है ।
             खुजली कई कारणों से हो सकती है । सामान्यत साफ सफाई न रखने गंदगी या गंदे वातावरण में रहने पेट में कब्ज रहने पेट में कृमि होने ज्यादा पसीना आने टी तथा चुस्त कपडे पहने से खुजली हो सकती है । यह छुत का रोग है जो घर में एक व्यक्ति के होने पर घर के सभी सदस्यों में फ़ैल जाता है ।
           खाज वाले रोगी के कपडे अलग रखें, उन्हें गरम पानी में कुछ देर रखकर साबुन से भली प्रकार धोएँ और धुप में सुखाएं |

  • खुजली से पीड़ित व्यक्ति की शैया पर दुसरे लोग न बैठे और न शयन करें |
  • देर तक न भीगे कपडे पहनकर न रहें, इससे त्वचा पर दाने उठ जाते हैं और फिर खुजलाहट होने लगती है 
  • खाज के रोगी के कपडे, तोलिया,टोपी दस्ताने आदि स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल न करें | 
  • तेज धुप में न चले, सूती कपडे पहने, क्योकि कुछ लोगों को धुप से एलर्जी होती है, परिणामस्वरूप चींटी सी काटने पर खुजलाहट होने लगती है | 
  • रोगी खुजाते समय नाख़ून से न खुजाएँ और पीप इधर उधर न पिंछे, बल्कि साफ रुमाल से धीरे-धीरे सहलाएँ |
          घरपे कैसे इलाज करना
*  सेंधा नमक, कपूर, सरसों और पिप्पली को कांजी में महीन पीसकर खुजली वाले स्थान पर लेप करें, फिर घंटे भर बाद स्नान कर लें |
*  सुखी खुजली में धतूरे के बीज सरसों या नारियल के तेल में पकाएँ | दिन में स्नान से एक घंटा पूर्व तथा रात्री में शयन से पूर्व गरदन के नीचे से इस तेल की मालिश करें | नीम या डिटोल साबुन से अच्छी तरह मसलकर धोएँ और साफ कपडे पहनें |
*  एक भगोने में नीम की पत्तियाँ खूब खोलाकर ठंडा होने पर उस पानी से खुजली वाले स्थान को रगड़कर धोएँ, बाद में नारियल का तेल लगाकर हलके हाथ से मालिस करें |
*  जीरा तथा सिंदूर को बारीक़ पीसकर कड़वे तेल (सरसों का तेल ) में पकाकर उसे खाज पर लगाएँ |
*  रक्त विकार से होने वाली खुजली के लिए खाली पेट नीम के पत्तों या कलियों का आधा या एक कप रस में कालीमिर्च पाउडर डालकर एक सप्ताह सेवन करें, इससे खुजली मिट जाएगी और त्वचा में निखार आएगा |
*  सरसों या तिल के तेल में लहसुन की कलियाँ छीलकर खूब पकाएँ | इन कलियों को तेल में मसलकर तेल छान लें | अब इस तेल से शरीर की मालिश करें |

Sunday, December 27, 2015

स्वाइन फ़्लू : और लक्षण

स्वाइन  फ़्लू  :
       स्वाइन  फ़्लू यानि इन्फ्लुएंजा वायरस ने विकराल रूप धारण कर लिया है । यह दूसरा मौका है, जब इन्फ्लुएंजा वायरस के संक्रमण को वैशिवक महामारी घोषित किया गया है । चार दशक पहले, संभवत सन 1968 में हांगकांग में इस वायरल के संक्रमण से करीब दस लाख लोगों की मौत हुई थी । अब इससे विकराल रूप को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्वव्यापी महामारी घोषित किया है ।


        स्वाइन  इन्फ्लुएंजा वायरल मुख्य रूप से सूअर को संक्रमित करता है । उसे वाहक बनाकर आज यह पूरी दुनिया में फ़ैल चूका है । यह एक सूअर से दुसरे सूअर में फैलता है । सूअर आदमी में फैलता है । यह एक मनुष्य से दुसरे मनुष्य में फैलता है । एक देश के मनुष्य से जब दुसरे देश का मनुष्य संपर्क में आता है, तो इसका प्रसार दुसरे देश में भी हो जाता है । इस तरह मनुष्यों के लगातार संपर्क से यह महामारी का रूप धारण कर लेता है ।
       लक्षण :  यह कई प्रकार का होता है, परन्तु विशेषग्नो का मनना है की एच 1 एन 1 वायरल सूअर और आदमी में सामान्य रूप से पाया जाता है । इससे अलावा एच 3 एन 2 वायरल के लक्षण भी देखे जाते है । इस रोग के लक्षण सामान्य फ़्लू की तरह ही होते हैं ।

  • तेज बुखार आना और गले में खराश या खिचखिच होना सिर दर्द के साथ बदन में दर्द । 
  • उल्टी और डायरिया की शिकायत होना या ज्यादा थकावट महसूस करना 
  • मलेरिया से ग्रस्त होना और श्वास फूलना, साँस लेने में तकलीफ, त्वचा का रंग हलका या भूरा दिखना । 
  • आलस छाया रहना, शरीर में पानी की कमी, भूख न लगना बेचेनी महसूस होना  । 
  • बुखार- खासी एक सप्ताह से ज्यादा समय तक बने रहना । 
घरेलु इलाज कैसे करे :
      चिकित्सकों एवं रोग विशेषज्ञ का मानना है कि स्वाइन फ़्लू वायरल का असर सप्ताह भर तक रहता है, कुछ रोगियों में तिन-चार दिन तक ही रहकर स्वत: चला जाता है । दवाइयों की अपेक्षा सावधानी और बचाव ही इसका अच्छा इलाज है । फिर भी कुछ नुस्खे प्रयोग में ला सकते हैं ।

  • पीड़ित व्यक्ति को गरम पानी में नमक या फिटकरी डालकर गरारे कराएँ । रोगी खूब पानी पिए । 
  • रोगी को नीम की पत्तियाँ ताजा (८-१०) काली मिर्च, लोंग, अदरक या सोंठ तथा गुड का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाएँ । इससे बहुत आराम मिलेगा । रोगी को पर्याप्त प्रोटीन युक्त भोजन दें । 
  • गिलोय का एक फुट का टुकड़ा कुचलकर पानी में भिगो दें । इसमें तुलसी दल इलायची, लौंग तथा काली मिर्च डालकर काढ़ा बनाएँ, चार पांच दिन पिलाए । चमतकारी लाभ होगा । यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है ।  
  • दवा के रूप में संजीवनी वटी सुन्दर्शन घन वटी, मृत्युंजय रस तथा शितोत्पलादी चूर्ण का सुबह - शाम सेवन कराएँ । ये दवाइयों देसी दवाखाने पर आसानी से मिल जाती है । 
  • ठंडी चीजें, फ्रिज का पानी, आइसक्रीम, चावल दही आदि का सेवन न करें । 

Tuesday, December 22, 2015

हड्डी के रोग : इलाज कैसे करे

हड्डी के रोग : 


          हड्डी चलने दौड़ने, उतरने-चढ़ने ढलान सीढ़ियाँ से फिसलने पैर ऊँचा-निचा पड़ने बच्चों को खेलते समय टखने घूटने या एड़ी में मोच आ जाती है । मोच आने पर मांसपेशियों पर अधिक खिंचाव पड़ता है या उस अंग पर मरोड़ सी आने लगती है । मोच आने पर वह स्थान सूज जाता है और दर्द होने लगता है ।





     * मोच वाले स्थान पर ठंडी सेक दें और उस पर तब तक पटटी बँधी रहने दें जब तक कि दर्द कम न हो जाए ।
     *  हल्दी को पानी में पीसकर उसका गरम लेप मोच वाली जगह पर कर दें ।
     *  मोचवाले स्थान पर सोज उतारने के लिए गरम पानी में फिटकरी या नमक डालकर पतली धार बनाकर गुनगुना पानी डाले ।
     *  हल्दी और प्याज को पीसकर मोच वाले स्थान पर लेप करें । इससे दर्द में आराम मिलेगा तथा सूरज उतर जाएगी ।
     *  तिल की पानी के छींटे देकर पीस लें उसे गरम करके गुनगुना ही मोच पर बाँधे ।
     * पुराना गुड़ तथा हल्दी मिलाकर प्रभावित स्थान पर बाँध दें ।
     *  सहद और चुना मिलाकर मोच वाले स्थान पर लेप करके पट्टी बाँध दें ।
     *  बैंगन के गुदे में हल्दी मिलाकर गरम करें हलका सेंक देकर मोच पर बाँधें ।

    सावधान : फ्रेक्चर होने पर बरतें

 फ्रेक्चर वाले अंग को हिलाएँ- दुलाएँ नहीं उलटी- सीधी मालिश करें ।
 यदि बाँह की ऊपरी या निचली हड्डी टूट गई हो तो बाँह को छाती के साथ बाँध दें ।
 हड्डी टूटने का पता न चल रहा हो और लगातार दर्द हो तो उसका एक्स-रे अवश्य निकाले ।
 एक्स-रे में यदि फ्रेक्चर दिखाई देता है तो डॉक्टर उसे सीधा करके प्लास्टर चढ़ा देगा, हालाँकि हड्डी अपने आप जुड़ती है प्लास्टर उसे हिलने-डुलने तथा टेढ़ा होने से बचाने के लिए चढ़ाया जाता है ।
 जिस चोट में फ्रेक्चर नहीं, परंतु दर्द और सूजन है तो उस स्थान पर बेंगन के आधे भाग पर हल्दी मिलाकर गरम करके बाँधें ।
 ग्वारपाठा का गुदा तथा हल्दी मिलाकर चोट पर बाँधें । दर्द और सूजन में राहत मिलेगी ।

Saturday, December 19, 2015

मुँह की दुर्गध : समस्या

मुँह की दुर्गध :
       मुँह की दुर्गध एक आम समस्या है । इसके कारण वयक्ति को समाज में शर्मिदगी का सामना करना पड़ता है । आखिर स्वयं को मुँह की दुर्गंध का पता कैसा लगे ? यह जानने के लिए आप निम्नलिखित उपाय अपना सकते है ।

     
           1) एक हाथ से अपनी जीभ को थोडा बाहर खिचे और दूसरे हाथ से एक रुई के फाहे को जीभ के पिछले भाग पर रगड़ें । कुछ मिनट रुकें और फिर उस रुई को सूंघे यदि उसमें दुर्गध है तो वह आपको साँस की दुर्गध के कारण है ।
             2)अदि आपके मुँह का स्वाद अकसर ख़राब रहता है तो वह भी दुर्गध का एक संकेत है ।
             3)अपने किसी मित्र या सबंधी से सच -सच बताने को कहें की आपके मुँह से दुर्गध आती है या नहीं । हो सकता है की सच्चाई कड़वी हो परंतु उसका पता चलने पर कोई उपाय तो कर सकते हैं ।
           4) प्रत्येक भोजन के पश्चात टूथब्रश से दांतों मसूढ़ों और जीभ को अच्छी तरह साफ़ करें ।
          5) कुस खाने के बाद यदी ब्रस करना संभव न हो पाए तो कम से  कम पानी से अच्छी तरह कुल्ला तो जरूर करें ताकि दाँतो और मसुढो  में फँसे भोजन के कण निकल जाएँ ।
           6) अधिकाधिक तरल पदार्थो विशेषक पानी का सेवन करें ताकि मुँह में वांछित नमी बनि रहे ।
          7) धूम्रपान न करें । अधिकतम लोग यह तो जानते है कि धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है । उनमे से एक मुँह की दुर्गध भी है अंत:इससे छुटकारा पाना है तो पहले इस आदत को छोड़े ।
          8) दुर्गध अगर पुरानी है तो घर से बहार निकलते समय मुख में एक इलायची तथा दो लौंग रखकर धीरे_धीर चबाएँ ।
          9) यदि दुर्गध लगातार आती है तो प्रात: शोच के बाद नीम की पाँच तथा तुलसी के तीन पतियाँ मिलाकर उसमें काला नमक रखकर पान की तरह चबाया करें ।
         10) सबसे अहम् बात यह है क़ि हर समय कुस भी खाने की आदत बदल दें या छोड दें । कुछ भी खाने के बाद मुख सुद्धि अवश्य करे । मुहँ की दुर्गघ् फिर भी बनि रहे तो किसी अच्छे दंत चिकित्सक से परामर्स लेना चाहिए क्योकि मुँह को सरीर का द्वार कहा गया है अगर यही साफ नहीं रहेगा तो इसके रास्ते सरीर में अनेको बीमारियाँ प्रवेश कर जाएँगी और आपको पता भी नहीं चलेगा ।

Thursday, December 17, 2015

होंठों फटना : घरका इलाज कैसे करना

होंठों कैसे फटना :
         जब मौसम बदलता है तब होंठों को इसकी मार झेलनी पड़ती है । कड़क सर्दी में तीखी ठंडी हवा से होंठो फट जाते है । उनमे दरार पड़ जाती है । गरमी की खुश्क हवा और लू के थपेथो से भी होंठ सुष्क और बरौनक हो जाते है । होंठ फटने पर ढंग से बोला भी नहीं जाता और हँसना तो बहुत दूर की बात है । हरदम चिड़ी चिड़ाहट मची रहती है । जीभ को लाख रोके पर होठो पर आए बिना नहीं रहती है । औरत मर्द, बाल वृद्ध सबको यह पीड़ा झेलनी पड़ती है ।


1) अगर होंठ फट गए हों तो वैसलीन या फिर किसी अच्छी कंपनी का लिप बाम लगाएँ ।
          2) रात को सोते समय होंठ पर गुलाब की पंखुडियोन और मलाई का पेस्ट बनाकर लगाने से भी फायदा होगा ।
         3) पानी कम पिने से होंठ फटते हैं । ऐसे में नियम से पानी की आदत डालें । रोज कम- से कम आठ दस गिलास पानी जरूर पिया करें ।
        4) होंठो को कभी भी दाँतो से नहीं चबाएँ । इससे होंठों का आकार बिगड़ता है और होंठ देखने में भददे लगते हैं ।
        5) अगर होंठ ज्यादा फट रहे हों तो सहद व देशी घी लगाने से भी फायदा होगा । अगर होंठों पर घी लगाना नहीं चाहते तो रात को सोते समय घी हलका सा गरम करके नाभि में लगाएँ । सुबह तक काफी फायदा होगा ।
         6) होंठों को गुलाबी बनाने के लिए उन पर लिपस्टिक या लिप गार्ड लगाएँ । इसके अतिरिक्त रत को सोने से पूर्व ग्लिसरीन में लाल गुलाब की पत्तिया पीसकर होंठों पर लगाएँ ।
         7) दूध की मलाई में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर मथ लें यह पेस्ट जैसा बन जायेगा । रात को सोने से पहले होंठों पर लगाएँ
        8) अधिक शीत तथा अधिक गरमी में होंठों को ढककर रखें इन्हें तीखी हवा से बचाएं ।
        9) होंठों को मुलायम और आभायुक्त बनाएँ रखने के लिए स्नान के बाद हमेसा नाभि में सरशो के तेल से हलकी मालिश किया करें ।
       10) हरे पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें ।ऐसे फल खाये जिसमें वीटामिन भरपूर मात्रा में हों ।

Tuesday, December 15, 2015

करेला : सब्जी कैसें बनाना

      करेला : सब्जी कैसें  बनाया जाता है |




          करेला स्वास्थ्य के लिये उत्तम लोग मानते है |  लेकिन करेला कडवा होनेके कारण लोग जादा न पसंद करते है | जो लोग करेला का सब्जी अच्सेसे बनाया तो उसका कडवास गायब हो जाता है  | लेकिन उसको स्वाद अच्छेसे बनाया तो बहुत लोक खानेमे पसंद करते है  | 
        क्या चाहिए :  
 250 ग्राम करेला 
 100 ग्राम टामेटा 
 3-4 चम्मच तेल 


 1 चपटी हिंग 
 2 चमचे बनाया कोथमीर (लीला धाना ) 
 1/2 चम्मच जीरा 
 1/4  चम्मच हल्दी 
 1/4  चम्मच लाल मिर्ची पाउडर 
 2 चमचा धानाजिरा 
 2 चमचा वरियाली पाउडर 
 1 चम्मच या स्वाद के ऊपर नमक डालना 

       कैसे करना : करेला को धोने के बाद सादा कपडे से साफ़ करके गोल गोल काट लिजेये | उनके बाद टामेटा काट लो |  एक पेन(तपेली) में तेल गरम कर के जीरा और हिंग वघार करीए | उनके बाद हल्दी और धाना जीरा डालीये और थोड़ी देर हिलाना उसीमे करेला का टुकडा डालो स्वाद चंखा कर नमक डाले | करेला को 3-4 मिनीट ढँक दिजीये धीरे से गेस चालू रखना है  | थोदीदेर में नरम हो गया मतलब पक गया उनके बाद टामेटा,वर्याली पाउडर, लाल मर्चा पाउडर और कोथमीर(धाना ) डालीये 2 मिनीट पेन(तपेली) खुल्ला रखके पकाने दो करेला बराबर चढ़ जाये तो गेस बंध कर दिजीये | दुशरी तपेली में निकल कर लीला धाना डाल कर चमचा से हिलाना है |
       

Sunday, December 13, 2015

गुरदे की पथरी: कारण और सावधान

गुरदे की पथरी :
         यह एक साधारण प्रक्रिया है की शरीर के क्षारीय तत्व पेशाब के साथ बाहर निकलते रहते है । परंतु जब ये शरीर से बाहर नहीं निकल पाते तो वहीँ रुक जाता हैं और धीरे धीरे ज़मने लगता है | इस तरह कुछ समय बाद पथरी का रूप धारण कर लेता है | यह पथरी तीनों दोषों वात,पित्त, कफ के प्रकोप से ही होती है | अधिकतर यह वात, पित्त, कफ तथा वीर्य में अवरोध उत्पन्न होने पर बनने लगती है |

      कारण और सावधान : अधिक मामलों में तो पथरी बनने के कारण क्षारीय तत्वों का शरीर से बाहर न निकल पाना ही होता है | इसके लक्षण होते है 1 मूत्राशय सूज जाता है या फुल जाता है | 2 पेडू के आस पास दर्द होता है या पेशाब कष्ट के साथ आता है | 3 मूत्र में बकरे के जेशी पेशाब दुर्गध आती है | 4 मूत्र - त्याग करते समय जोर की पीड़ा होती है | पेशाब जोर लगाकर उतरता है और वह भी पीड़ा के साथ बूंद बूंद करके आता है | 5 कभी कभी पेशाब के साथ रक्त भी आता है | पेडू में अत्यंत जलन और भयंकर वेदना होती है | पथरी का रंग लाल, काला, पिला, नीला अथवा सफ़ेद होता है | या काटेदार तिकोनी या चपटी आदि कई तरह की और चिकनी होती है |
           पथरी के रोगी को पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए | पकवान अधिक गरम चीजे, तेज मिर्च मसाले, मांस, मछली, अंडा आदि नहीं खाने चाहिए | तरबूज,ककड़ी, खीरा, मूली, शहद, नारियल पानी आदि का सेवन करना चाहिए | एक विशेष सावधानी जरुर बरतनी चाहिए की वीर्य के आवेग को बिच में न रोकें अदि ऐसा होता है तो यह मूत्राशय में या मुत्र्द्रार में सुखकर अवरोध पैदा करता है और फिर पथरी को जन्म देता है |
      घरेलु इलाज से पथरी को निकाल पाना संभव है |

  • मूली के 30 ग्राम बीज आधा लीटर पानी में उबालें आधा शेष रहने पर छानकर पिएँ | दो सप्ताह के इस्तेमाल से गुरदे की पथरी गलने लगती है |
  • बड़ा सा प्याज साफ करके पीसकर उसका रस निकालें कपडे में छानकर एक कप की मात्रा: खाली पेट पिलाएँ | कुछ दिनों के सेवन से अच्छा लाभ मिलेगा |
  • पथरी के रोगी पर्याप्त मात्रा में चौलाई का साग अपने भोजन में शामिल करें |
  • भोजन में खीर, तरबूज ककड़ी का अधिक सेवन करें या सेंधा नमक डालकर इनका रस पिएँ |पेठे के रस में हिंग तथा कालीमिर्च डालकर प्रात: सेवन किया करें |
  • दो टोला हल्दी तथा 350 ग्राम गुड़ मिलाएँ | इसमें से आधा चम्मच रोज कांजी के साथ सेवन करें |
  • रात के 15 ग्राम गेहू 250 मि.ली. पानी में भिगो दें, प्रात: उसे छानकर मिश्री मिलकर सेवन करें | जलन और दाह शांत रहेंगे |
  • गाजर के बीज दो चम्मच की मात्रा में एक गिलास पानी में उबालकर चीनी या खांड मिलाकर पिएँ | इससे पेशाब ज्यादा खुलकर आएगा |
  • गाजर का नित्य सेवन करने से यह गुरदे की पथरी को तोड़कर निकाल देता है |
  • गन्ने का रस भी अधिक पेशाब लाता है, इससे पेडू की जलन और दाह शांत होते हैं |

Thursday, December 10, 2015

स्तनपान माताओं को रोध : दूध न उतरना

 दूध न उतरना :
          दूध न उतरना आजकल देखने में आता है कि प्रसव के बाद नावप्रसुता माँ को दूध ही नहीं उतरता, उतरता भी है तो बच्चे के लिए अपर्याप्त होता है । गरीब माँ ही नहीं खाते पीते घरो की महिलाओं में भी यह समस्या देखने में आती है । सामान्यतया इससे लिए उचित खान पान तथा हार्मोन्स की गड़बड़ी सबसे बड़ा करण है । शरीर का पर्याप्त व्यायाम न हो पाना भी एक कारण है । इससे एक समस्या और देखने में आ रही है की महिलाओं को नोर्मल डिलिवरी नहीं हो पा रही है ।

        
               घरेलु मदद से माँ का दूध बढाया जा सकता है - 

      प्रसव पूर्व से ही प्रसविनी को रात्रि शयन से पूर्व दूध का पान करना चाहिए | दूध, गुड और नारियल का सेवन करने से माँ के दूध में वृद्धि होती है | भोजन में चावल का माँड तथा सोयाबीन को शामिल करने से स्तनों में दुग्ध वृद्धी होती है | शतावर, विदारीकंद तथा छोटी दुधि  सम मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | आधा चम्मच चूर्ण दूध के साथ सेवन करें तो दूध की मात्रा बढ़ जाती है | साबूदाने की खीर में पिसा जीरा डालकर सेवन करें, इससे स्तनों में दूध उतरने लगेगा |

  • स्तनपान कराने वाली माताओं को किसी भी रूप में नित्य कच्ची मूंगफली का सेवन करना चाहिए |
  • भोजन के साथ कच्ची प्याज का सेवन करने से दुग्धपान कराने वाली माताओं का दुग्ध बढ़ जाता है |

Friday, December 4, 2015

खाँसी : खाँसी होने के कारण

खाँसी कैसे होता है :
     मौसम परिवर्तन या मौसम की संधि के आने पर खाँसी का प्रकोप बढ़ जाता है | बरसात की समाप्ति तथा सर्दी के आगमन पर खाँसी का प्रकोप तेजी से बढ़ता है | घर में एक व्यक्ति को खाँसी होने पर यह अन्य सदस्यों को भी आसानी से अपनी चपेट में लेती है | ठंडी चीजों खाने या गरम स्थान से ठंडे में जाने पर गले में खिचखिच शुरू होकर खाँसी का रूप धारण कर लेती है | लापरवाही के कारण यह तेजी से फैलती है |
       छाती में कफ जमा होने लगता है, जिससे घरर घरर या खों खों की आवाज होती है | जब श्वास आसानी से नहीं आता- जाता तब यह खाँसी के रूप में जोर से बाहर निकलती है | इससे गला दुखने लगता है, सिर में दर्द तथा कुछ भी अच्छा नहीं लगता है | खाँसी का मरीज रत को सो नहीं पाता | सुबह शाम जब मौसम में आर्द्रता होती है, तब इसका प्रकोप वेग बढ़ जाता है |
      खाँसी दो प्रकार की होती है :

      एक सुखी खाँसी और एक कफ- थूक के साथ गीली खाँसी | सुखी खाँसी में खाँसने पर मरीज को जल्दी चैन नहीं आता है | परंतु तरल में कफ निकलने पर इसका वेग कम हो जाता है |
      वास्तव में खाँसी कोई रोग नहीं है बल्कि यह एक फेफड़ों की गंदगी को निकालने का एक प्राकृतिक उपाय है | जब फेफड़ों में बलगम भर जाती है और स्वत: नहीं निकलती तो प्रकृति खाँसी द्रारा उसे निकाल करके फेफडे की सफाई का प्रयास करती है | दूषित वातावरण में मौजूद धुँआ, हवा, पानी और धूलकण भी श्वास नली में प्रवेश करके खाँसी पैदा करते हैं |

      खाँसी होने का कारन क्या है   १) ठंडे- गरम वातावरण में रहने से  २) तेज धुप में चलकर आने के बाद डंडा पानी पिने के कारण ३) अत्यधिक डंडी चीजों का सेवन करने से ४) तली चीजें खाने के बाद डंडा पानी पीने से ५) खाँसी के मरीज के संपर्क में आने रहने पर ६) एलर्जी ७) धुल धुआँ घुटन भरे वातावरण में रहने पर
     इलाज कैसे करना  

  • मौसम खाँसी के लिए अदरक रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर सीरप बना लें दिन में तीन बार एक एक चम्मच सेवन करें | आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा | रोगी को भाप भी देते रहें |
  • गरम पानी में नमक डालकर गरारे करें | इससे गले संक्रमण में लाभ मिलेगा | दिन में 2 से 3 बार भाप लेना भी हितकर होता है | 
  • यदि गर्भवती स्त्री खाँसी से पीड़ित है तो आधा कप दूध में आधा कप पानी तथा 3 ग्राम बड़ी इलायची का चूर्ण डालकर उबाले | जब आधा बच जाए तो उतार लें | इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम सेवन कराएँ लाभ मिलेगा |
  • रात्रि को सोते समय भुनी हल्दी की गाँठ दाड़ के निचे दबा लें और धीरे धीरे चूसें इससे खाँसी में आराम मिलेगा ।
  • लवंगावादि वटी 2-2 गोली दिन में तीन बार चूसने को दें ।
  • अदरक का रस निकालकर उसमें सम भाग शहद व् थोड़ी काली मिर्च मिलाकर सिरप बना लें । एक एक चम्मच दिन में तीन बार पिलाएँ । 
  • तुलसी के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटें ।
  • रात्रि को शयन से पूर्व एक चम्मच हल्दी पाउडर गुनगुने पानी के साथ सेवन करें ।


टी . बी : लक्षण और उपचार

टी.बी.
         एक समय में यह बड़ा भयानक रोग मन जाता था । इसका रोगी जीवन की आसा ही छोड़ देता था, तब यह लाइलाज रोग माना जाता था । संस्कृत में इसे यक्ष्मा क्षय, युनामि चिकित्सा में इसका नाम तपेदिक है | अंग्रेजी यानी एलोपैथी चिकित्सा में इसे टी.बी. कहा जाता है | इस बीमारी के साथ अनेक अन्य रोग भी साथ लग जाता है | 
       इस रोग में शरीर दिनोदिन क्षय होता है रोगी तेजी से कमजोर हो जाता है | मरीज का वजन घटने लगता है | भूख-प्यास जाता रहता है | कुछ भी करने पर भी या काम तुरंत थकावट महसूस होती रहती है | टी.बी. का पूरा नाम (Tuberculosis Bacillus) नामके कीटाणु,जो बड़ा ही खतरनाक होता है | यह फेफड़ा,त्वचा,जोड़ो या गले की हड्डी,अंतड़ियाँ और हड्डियाँ शरीर के लगभग सभी अवयवों पर आक्रमण करने की ताकत रखता है | पुराना होने पर फेफड़े को धीरे धीरे खाकर उन्हें नष्ट हो जाता है |

 मरीज के शरीर में क्या क्या होता है ?
       
       टी.बी. का रोगी निरंतर खाँसता रहता है | तिन हप्ते से अधिक समय तक लगातर खांसी आता है तो टी.बी. हो सकता है | पुराना होने पर मुँह से खून भी आने अगता है | व्यक्ति जल्दी ही थक जाता है और हाँफने लगता है | वजन कम हो जाता है और सिरदर्द बुखार भी बना रहता है |चेहरे की चमक मलिन हो जाती है,शरीर पर मांस नहीं रह जाता है | रोगी को नींद नहीं लगती है  और चलते सोते समय उसका मुँह खुला रहता है | कभी कभी उलटी या जीभ लाल रहती है और पेचिश की शिकायत रहती है | सुबह शाम खाँसी का दौर तेज हो जाता है तथा खाँसते समय छाती में पीड़ा होती है | भोजन में स्वाद नहीं आता | रोगी उदास रहता है उसकी आवाज क्षीण हो जाती है |
रोगी को सावधान और उपचार कैसे करना 
  • क्षय रोगी के खुले में न थूकना इसके कीटाणु दुसरो को अपना शिकार बना सकते है |
  • रोगी के लिए विशेष साफ सफाई की जरुरत होती है | कपडे रोजाना गरम पानी में धोएँ 
  • रोगी के जूठे बरतन में स्वस्थ व्यक्ति भोजन न करें रोगी को पूरा विश्राम देना और दवाई नियमित रोगी को दिलाएँ |
  • रोगी को वायुदर कमरे में रखे. जाया सीलन तथा शोर शराबा न हो |
  • आजकल टी.बी. भयानक रोग नहीं रह गया है | इसका सफल इलाज संभव है | छह माह का कोर्स करने पर रोगी सम्पूर्ण स्वस्थ हो जाता है | रोगी को तुरंत बलगम जाँच कराएँ | बलगम की जाँच दो बार करानी चाहिए |
  • रोगी को छाती का एक्स-रे तथा खून की जाँच अवश्य कराएँ | इलाज के दोरान ठंडी या गरिष्ठ चींजे न खाएँ |
  • रोगी होने किसी टी.बी. क्लीनिक या डॉक्टर से इलाज करना जा सकता है | दवा का क्रम बिच में टूटने न दें लगभग छह माह तक निरंतर दवा खाएँ |
  • खाने में ताजा सब्जियाँ तथा कुछ पौष्टिक आहार ले जिससे स्वास्थ्य जल्दी ठीक होता है | और देर तक न जागे भरपूर नींद लें, इलाज के दौरान भी भारी काम न करें |

डेंगू बुखार : लक्षण का उपचार

    डेंगू बुखार :
       डेंगू  बुखार एक खतरनाक बीमारी है | पिछले कुछ वर्षो में  डेंगू  के मामलों में काफी तेजी से वृद्री हुई है | प्राय: बरसात के बाद तो  डेंगू  का प्रकोप अत्यधिक बढ़ जाता है |
          डेंगू बुखार एक वायरल संक्रमण है, जो कि एडिस मच्छर के काटने से होता है | एडिस मच्छर हमारे घरों के आसपास खड़े पानी पर ही पनपता है इस बीमारी से सिर, आँख, कमर और हाथ पैरों में अधिक दर्द होता है | ऐसा लगता है जैसे हड्डियाँ टूट रही हैं | इसी कारण इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है | डेंगू ज्वर की शुरुआत अचानक होती है और कुछ ही घंटो में तापक्रम 105 अंश तक पहुँच जाता है | तीसरे दिन ज्वर कम होकर पांचवे दिन फिर बढ़कर सातवें दिन तक उतर जाता है |
        लक्षण का उपचार :

  • सिर में बहुत तेज दर्द तथा आँखों में दर्द |
  • उलटी आना. नकसीर फूटना और हिमोग्लोबिन के स्तर में वृद्धी |
  • नाक, मसूड़ों, गुदा व मूत्र नलिका से खून आना |
  • रक्त प्लेटलेट (बिंबाणुओं) की संख्या में भारी गिरावट |
  • त्वचा विशेषकर छाती पर लाल-लाल दाने उभर आना |
  • मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द |                                                                                                                    डेंगू का वायरल शरीर में घुसने के बाद सीधे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र पर हमला करता है | रोगी को मुलायम बिस्तर पर लिटाकर आराम देना चाहिए | इस रोग में आराम ही ओषधि है                                        भूख खूब लगती हो तो ज्वर की हालत में दूध, साबूदाना, चाय, मौसमी, बेदाना, अनार, ताजे, किशमिश आदि चीजें खाने को देनी चाहिए |
  • शारीरिक एवं मानसिक किसी भी प्रकार की मेहनत, स्नान, स्त्री प्रसंग आदि से बचना चाहिए |
  • रोगी को गिलोय, अदरक, तुलसी, इलायची का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाएँ | तरल पधार्थ अधिक से अधिक पिलाएँ |
  •   नीबू,अदरक की चाय दिन में दो बार पिलाएं | इससे रोगी को बड़ा आराम मिलेगा |
  • सुवर्ण नारदिप लक्ष्मीविलास रस की एक गोली सुबह-शाम ले सकते हैं | 
  • जब बुखार उतर जाए तब रोगी को शक्तिप्रद, बलवर्द्रक तथा पौष्टिक आहार दें, जिससे उसकी शारीरिक कमजोरी जल्दी दूर हो |
  • रोगी को तिन दिन प्रात: नीम की ताजा कलियों का रस एक कप तथा पांच कलि मिर्च का पाउडर एक दो बताशा घोकर पिला दें | रोगी जल्दी स्वस्थ हो जायेगा |  
  • डेंगू बुखार में अकसर प्लेटलेट कम हो जाते हैं | अत: बुखार की दवा के साथ- साथ गिलोय, तुलसी काढ़ा तथा पपीते के पत्तों का रस देने से रोगी जल्दी ठीक होता है | रोगी को अधिक मात्रा में पानी तथा तरल पदार्थ दें, रोटी न दें, पतला दलीय तथा खिचड़ी भोजन में दें तो रोगी तिन-चार दिन में चंगा हो जाता है | स्वस्थ होने के लिए कम से कम 1.5 लाख प्लेटलेट होने चाहिए |

Thursday, December 3, 2015

गर्भावस्था : क्या परेशानियाँ होती है ?

गर्भावस्था :
       गर्भकाल एक महिला के लिए सबसे जटिल समय होती है | एक और उनके खान-पन, आचार व्यवहार पर विशेष ध्यान देना होता है, वहीँ दूसरी और उन्हें अपनी शारीरिक फिटनेश पर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए | इसमें लापरवाही बरतने पर गर्भिणी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कमर दर्द पेडू में दर्द चक्कर आना उलटी आना और कभी-कभी रक्तस्त्राव होना |
       गर्भकाल में महिला को कमर दर्द :

        माताएँ यह बात अच्छी तरह से जानती हैं की गर्भकाल में अक्सर माता का वजन दस-बार किलो के लगभग बढ़ जाता हैं | इसके परिणामस्वरूप गर्भिणी को झुककर चलने की आदत सी पड जाती है | इसके रीढ़ की हड्डी एव कमर की माँसमेशियों पर जोर पड़ता है, जिसके कारण कमर में दर्द होने लगता है | अकसर काम करते रहने से महिलाएं थक जाती है, अंत झुककर चलने लगती है | फिर वह निरंतर ऐसा करती है | गर्भावस्था में प्रोजेस्टरोंन नामक हार्मोन बनता है, जो शरीर एवं जोड़ों को लचीला बनाता है | इससेकमर के किसी भी जोड़ में आसानी से लचक आ जाती है, जो कमर के दर्द को जन्म देती है | गर्भावस्था के दौरान आहार में कैल्शियम की कमी से भी कमर दर्द हो सकता है |
      गर्भावस्था में सावधान कैसे बरतनी चाहिए -
  • कमर दर्द से छुटकारा पाने के लिए सर्वप्रथम आहार में कैल्शियम एवं लोहे की प्रचुर मात्रा लें, यानि दूध, केला, सेब, पालक, अंजीर आदि लें | यह सब करने के बावजूद अगर कमर दर्द हो तो डॉक्टर से परामर्श लेकर आगे का इलाज करवाएँ | गर्भावस्था के दौरान निम्न सामान्य बातों को अपनाकर कमर दर्द से मुक्ति पाएँ -
  • यदि जमीन पर झुकना पड़े तो कमर के बजाय घुटनों को मोड़ें | आलथी-पालथी मारकर या टांगों को क्रांस करके न बैठें | सोते समय घुटनों को मोड़कर सोएँ |
  • बिस्तर से उठते समय पहले बिस्तर के किनारे पर सरककर आ जाएँ | बाद में दोनों पैरो को निचे लटकाकर बिस्तर पर बैठें | उसके बाद पलंग से उतरें |
  • खरीदारी करते समय दोनों हाथो में बराबर वजन उठायें | अगर बच्चा गोद में है तो बार-बार उसको अलग-अलग ढंग से गोद में लिताएं |ऊँची एडी में सेंडील कदापि न पहनें |
  • बैठते समय कुरसी के पिछले भाग से कमर को सहारा दें अथवा कमर और कुरसी के बिच में तौलिया लपेटकर या गोल तकिया रखकर बैठें | कम ऊंचाई वाले सोफे या मुढे पर न बैठें |
  • सीधा खड़े रहने की कोशिश करें | पेट को अंदर की तरफ दबाएँ | चलते समय दोनों पैरों पर समान वजन रखें |
  • सबसे अहम् बात तो यह है की गर्भकाल में लेडी डॉक्टर से समय-समय पर बताना अवश्य कराएँ |इस दोरान आयरन तथा कैल्शियम की गोलियाँ लेना न भूलें और थोडा-बहुत घरेलु कार्य जरुर करें | 

Wednesday, December 2, 2015

मुँह में छाले आना :कारन सावधानियां

मुँह में छाले आना :
        मुँह में छाले होना आम बात है | यह हमारी मुसीबत बहार से नहीं आती, बल्कि हमारी अनियमित दिनचर्या और उलटा-सीधा खाने का दुष्परिणाम है | छोटे-बड़े और जवान-बूढ़े कोई इससे बच नहीं पाते हैं |

     














 कारण के अनियमित दिनचर्चा गलत आहार-विहार चपटी और मसालेदार चीजों का ज्यादातर सेवन बाजार की बनी बासी चीजें खाने समय पर शोचालय न जाने या उसे दबाने पर पेट में कब्ज बनने लगती है और फिर पेट में गरमी बढ़ जाती है,मल कठोर हो जाता है और पेट साफ़ नहीं होता | परिणामस्वरुप मल वायु कुपित होकर ऊपर चढ़ने लगती है | और मुँह में छाले के रूप में सामने आती है |मुँह के छालों से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है, क्योंकि यह बीमारी हमारी स्वयं की पैदा की गई है
१) सबसे पहले तो अपनी दिनचर्चा बदलें | प्रात: जल्दी जागें,उठते ही एक गिलास ठंडा पानी पिएँ फिर शौचालय जाएँ | जब तक कब्ज बनी रहेगी तब तक छालों से निजात संभव नहीं |
२) कब्ज दूर करने के लिए इसबगोल की भूमी त्रिफला चूर्ण तथा सलाद का सेवन करें | कब्ज निवारक फल अमरूद पपीता आदि खाएँ |
३) अधिक जली-भुनी तथा तली और देर से पचने वाले खाध पदार्थो का सेवन न करें | इसके स्थान पर हरी सब्जियां दूध छाछ,दही का अधिक सेवन करें |
४) चाय-काँफी का सेवन कम-से कम मात्रा में करें | इसके अलावा धूम्रपान बिलकुल न करें |
५) जिन लोगों को बार-बार छाले होते है, वे टमाटर अधिक खाएँ तथा प्रात: पपीता,अमरुद आदि फल खाएँ | चाय-काँफी बिलकुल न लें बल्कि इसके स्थान पर नीबू-पानी पिएँ | पानी तथा तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें | थोडा बहुत व्यायाम अवश्य करें देर तक न सोएँ | बार-बार खाने की आदत को बदलें |
६) दिन में 2-3 बार कच्चे नारियल के २-३ तुकडे और चिरोंजी चबाकर खाएँ | एक गिलास गरम दूध में आधा चम्मच पीसी हल्दी डालकर पिए | छालों में रहत मिलेगी |
७_ ताजा फीका दही खाने तुलसी की चार-पांच पत्तियों को चबाकर ऊपर से पानी पिने,गुड की डली को मुंह के छाले दूर होते है |
८) हरी सब्जियाँ सलाद के रूप में खाएँ तो अति उत्तम रहेगा | पेट में कब्ज नहीं बनेगी | छालों के दौरान चावल अधिक न खाएँ |

Saturday, November 28, 2015

स्तन कैंसर : सायलेंट किलर माना जाता है

स्तन कैंसर क्या है 
       स्तन कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर है | ग्रामीण महिलाओं में यह जानलेवा रोग अधिक पाया जाता है | इसी तरह शरीर समाज की उच्च वर्ग की महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले अधिक संख्या में देखे जाते हैं | स्तन कैंसर को सायलेंट किलर माना जाता हैं, क्योंकि यह चुपचाप हमला करता है | देश में  स्तन कैंसर के मामला में तेजी से वृद्धी हो रही है | हर २२ में से एक भारतीय महिला को  स्तन कैंसर है | उम्र के साथ स्तन कैंसर है की आशंका भी बढ़ जा रही है | जिस मरीज माँ, मौसी या बहन को कैंसर हो तो उसे कैंसर होने की आशंका अधिक होती है |


की तरह लड़की लड़ाई



        



    स्तन कैंसर का लक्षण या बचाव कैसे करे -
       स्तन कैंसर महिलाओं में शोध हो जाती है | यह शोध धीरे-धीरे बढती है तथा घाव का रूप धारण कर लेती है | इसमें स्तन पर नीली- नीली शिराए उभर आती है, वहाँ की चमड़ी सख्य तथा काली सी पड़ जाती है | हर समय स्तन में दर्द की चुभन और जलन महसूस होती है | रात्रि के समय कष्ट ज्यादा बढ़ जाती है | स्तन कड़क होना ,स्तन की त्वचा पर घाव होना, निप्पल का अन्दर की और घंस जाना रक्तश्त्राव होना, बगल में गांठ होना और हाथ में सुजन आ जाना कुछ ऐसे प्रारंभिक लक्षण है जो स्तन कैंसर की और संकेत करते हैं |
      स्तन कैंसर महिलाएँ स्वय इन लक्षणों को देख सकती है | आवश्यक है की कम- से कम एक बार अपनी जाँच स्वयं करें | सबसे पहले तो महिलाओं को इस रोग के प्रति जागरूक होना चाहिए | मोटापा न चढ़ने दें, चिकनाई वाला भोजन सिमित मात्रा में खाएँ शराब का सेवन बिलकुल न करें, नियमित रूप से व्यायाम करें, विटामिन सी का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें, इसकी प्रधानता वाले फल संतरा, मौसमी, नीबू, चकोतरा तथा पत्तेदार, सब्जियों का अधिक सेवन करें, | स्वयं अपने स्तनों का कम-से- कम प्रति सप्ताह परिक्षण अवश्य किया करें |

  • सोया का सेवन करें - सोयाबीन, सोया आटा, किसी भी रूप में सोया का सेवन करें | सोया कैंसर से सुरक्षा देता है | गाजर, आडू, अखरोट, पपीता, टमाटर, मटर, शकरकंद, नाशपाती का सेवन करें |
  • विटामिन सी युक्त खाध पधार्थो को अपने भोजन में शामिल करें | विटामिन सी को एंटी कैंसर माना जाता है | यह आँवला, संतरा, अमरुद, नीबू, आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है |
  • अंकुरित दालों व बिन्स का सेवन करें | मुंग, चना, उडद दाल आदि के अतिरित आलू, भुट्टा आदि का सेवन करें | स्तन-गाँठ का पता लगते ही योग्य चिकित्सक से इलाज कराएँ |

       

Wednesday, November 25, 2015

दम की खाँसी और दमा के रोग

दमावाली खाँसी :
         दमावाली खाँसी का कारन नि:श्वास की समस्या हो जाना ही दमा है | इसमें न तो सुगमता से शुद्र वायु ओंक्सिजन अंदर ली जा सकती है तथा न ही अंदर की कार्बन डाइओंक्साइड बाहर निकल पाती है |
           दमवाली खाँसी आधी रात को दमा अधिक तेज होता है | रोगी न तो चैन की साँस ले पाता है न ही ठीक से बैठ सकता है | कई बार वह छटपटाते, खाँसते बैठे पूरी रात काट देता है | थक हारकर नींद ले पाता है | बलगम निकलने के साथ कुछ चैन पाता है | आचार, तैलीय खाध पधार्थ ठंडे पेय पधार्थ दही, दूध ,चावल आलू, शराब, या धुम्रपान इस रोग को बढ़ाते है |
          घरेलू नुस्खे इसमें बड़े कारगर है - 
  • दूध में खजूर या छुहारा, किशमिश या मुनक्का उबालकर देने से रोग शांत होता है | रक्त शुद्र होता है नया रक्त तथा इसमें लाल रकतकण निर्मित होते हैं | बेसन की रोटी या काले चने व आटे की रोटी गरम घी के साथ खाने से ऊपर से पानी न पीने से काफी लाभ मिलता है | 
  • देसी घी दो चम्मच, चार साबुत कलि मिर्च देशी खांड दो चम्मच सबको गरम कर रोगी को खाने को दें | ऊपर से पानी न पिएँ | शातावर का चूर्ण दूध के साथ लेने से बहुत जल्दी आराम मिलता है | ऐसे रोगी के लिए मीठी पकी खुबानी संतरा, मौसबी, पका पपीता, कच्चे पपीते की सब्जी, अनार, नीबू आदि फायदेमंद रहते है |
  • दम उखड़ने के समय परात या टब में गरम पानी भरें और उसमे पैर डालकर अपनी श्वास सामान्य करें |हरी सब्जियाँ फल, मूली, गाजर, पत्तागोभी तथा पालक लाभदायक हैं |दमा की तीव्रता को कम करने के लिए इनहेलर इस्तेमाल कर सकते हैं |
  • ठंडी तथा तली चीजों से परहेज करें, इससे दमा जल्दी-जल्दी परेशां नहीं करता है | 
क्या है दमा के रोग -
         दमा के रोगियों में इस बीमारी की शिकायत एकदम से उत्पन्न नहीं हो जाती | जब मनुष्य जन्म लेता है, उसके रक्त में कुछ ऐसे कण होते है, जो बाहरी वातावरण के संक्रमण से फलते फूलते हैं | कई लोगों में तो इनके लक्ष्ण बचपन में ही प्रकट हो जाते है और कइयो में १७-१८ वर्ष की आयु के बाद या फिर ३५-३६ वर्ष की आयु के बाद |
        एलर्जी रोगी की नाड़ियों में सुजन हो जाती है और सुजन के कारण नाडीयां तंग हो जाती है, इसका प्रमुख कारण होता है एलर्जी | वातावरण की धुल मिटटी में कुछ विशेष प्रकार के कीड़े आदि होते है, हमारी साँस द्रारा इनके अंदर चले जाने के कारण यह एलर्जी पैदा होती है | मादा कॉकरोचों के पंख,फूलो के परागकणों का हवा में उड़ना, अनाज की डस्ट, फंगस का सुखकर उड़ना आदि में ऐसे कण हैं जो हमारी नंगी आँखे को नजर नहीं आते |
       रोग के लक्ष्ण में दमा के रोगियों को जल्दी साँस चढ़ जाती है, रात के समय अधिक साँस चढ़ती है | पर्याप्त नींद न ले पाने के कारण चेहरा मलिन अशक्त सीढियाँ, बस, रेल आदि में चढ़ने से ही साँस फुल जाता है | बिगड़े हुए दमा वाले मरीजो में स्थिति और भी बदतर होती है | दमा के रोगी को हर समय खाँसी आती रहती है | दमा का कारण एक और भी है, जो बीडी सिगरेट तथा चरस गांजा आदि का नशा करते है, उनकी साँस की नाड़ियाँ संकुचित हो जाती हैं तथा धुएँ के कारण फेफड़ो में फंगस जैम जाती है, जिससे फेफड़ो के छिद्र बंध हो जाती हैं | इस तरह वे भी दमा के रोगी बन जाते है |
       दमा का उपचार :-

  • दमा का दौरा शुरू होने पर रोगी को गरम पानी के टब में खड़ा करें इससे श्वास सामान्य होने में राहत मिलेगी | महुआ के फुल, लौंग, काली मिर्च सोंठ तथा इलायची का काढ़ा सुबह शाम बनाकर सेवन करें | 
  • दमा के रोगी को प्रतिदिन भाप की सिंकाई या बफार अवश्य लेना चाहिए, इससे श्वास नलिका साफ़ हो जाती है और संकुचन दूर होता हैं | दमा के साथ खाँसी हो तो कासामृत हर्बल सिरप सुबह शाम एक-एक चम्मच लें |
  • दमा के रोगी ढीले और आरामदायक कपडे पहने | रोगी का कमरा हवादार होना चाहिए वहा सीलन नहीं होनी चाहिए | दमा के रोगी अदरक, लौंग, कालीमिर्च तथा लसुड़े के पत्तों का काढ़ा बनाकर चाय के स्थान पर सेवन करें, तो दमा का दौरा नहीं पड़ता |
  • रोगी रात को सोते समय अपने सिने पर कोई कपडा, तौलिया,शाल आदि रखकर सोए | इससे सिने में गर्माहट बनी रहती है और श्वास नहीं फूलता | दमा के रोगी बारह महीने तथा रात्रि में सोने से पहले गरम पानी से गरारे अवश्य करें | साथ ही दो-चार घूंट गरम पानी पिएँ भी, इससे दमा में बहुत आराम मिलता है |
  • ठंडी तथा बादी वाली चीजें - आइसक्रीम, दही, चावल, उड़त की दाल रात में खीरा आदि का सेवन न करें | दमा के रोगी उठकर लंबी-लंबी साँस खिंचकर प्राणायाम करे, इससे रोग में बहुत आराम मिलता है |

Sunday, November 22, 2015

पेशाब में जलन होना : क्या कारन है ?

मूत्र के रोग संबंधी :
          पेशाब में जलन दर्द या रूकावट बड़ा ही पीड़ादायक होती है । पूरा शरीर कटी बेल की तरह मुरझा जाता है । शरीर में मूत्र सन्सथान है जिसमे गुरदे सबसे महत्वपूर्ण हैं । हमारे शरीर में गुरदों का काम है रक्त को साफ करना यानि फ़िल्टर करना । रक्त में जो जलीय अंश होता है गुरदे उनको निकाल देते है । यह जलीय अंस मूत्राशय से होता हुआ  मूत्रनली से पेशाब के रूप में शरीर से बहार हो जाता है ।         अगर व्यक्ति के गुर्दे स्वस्थ और मजबूत है तो उसे कोई तकलीफ नहीं होती है क्योंकि उसका रकत शुद्ध बना रहता है । पेशाब पर्याप्त और ठीक तरह से उतरता है और गुरदे में विकार या अन्य कारणों से पेशाब में रूकावट होने पर तीव्र वेदना होती है और पेट सूज जाता है । रोगी दर्द से छटपटाता और चिल्लाना लगता है ।


           मूत्र के कारण पेशाब में जलन और दर्द के कई कारन हो सकता है । गुर्दे की गड़बड़ी तथा गुरदों में पथरी होना भी एक कारन हो सकता है । वैसे दूषित पानी दूषित भोजन पधार्थ खाने और जले मसाले खट्टे गरम आहार अधिक लेना मधपान धूम्रपान दुशरे नशीले पधार्थ सकारण होता है । इसके अलावा पेशाब को देर तक रोके रखना दवाब बढ़ने पर भी पेशाब व् मल त्याग न करने जाना आदी कारण भी हो सकता है ।कारण के इससे मूत्राशय पर दबाव काफी बढ़ जाता है । पानी कम तथा तले पधार्थ खाने से भी पेशाब में जलन और दर्द होता है । खेल कूद या अन्य कारण से चोट लगने पर भी पेशाब की जगह दर्द की शिकायत होती है ।
        घरपे कैसे उपाय करना
* घर पे स्वच्छ तथा फ़िल्टर किया हुवा पानी पिये घरपे फ़िल्टर ना हो तो पानी को उबालकर उसे ठंडा करके पीना है ।
* नारियाल का पानी गन्ने का रस तथा अन्य पधार्थ सेवन करें ।
* फल सब्जी तरबूज, खरबूज, ककड़ी, प्याज, चोलाई, अंगूर, संतरा आदि अधिक मात्रा में सेवन करें ।
* शराब, मट्ठा, दही, केला, उड़द की दाल आदि का सेवन न करें ।
      उपचार घरेलू कैसे करना
* पेशाब में जलन होने पर ताज़ा मूली और मूली के पत्तों को कूट पीसकर रस निकले और आधा कटोरी रस पीए । इसी तरह कुछ दिन सुबह शाम पीते रहें , पेशाब सामान्य रूप से आएगा और जलन दूर होगी ।
* एक छोटी चम्मच जीरा तथा सम मात्रा में मिश्री के साथ पीसकर खाएँ । उपरसे ताज़ा पानी पिए इसी तरह दिन में तीन बार दो तीन दिनों तक सेवन करें ।
* चार छोटी इलायची के बिच निकालकर पीस लें । आधा छोटा चम्मच चूर्ण की फंकी लेकर ऊपर से मीठा गुनगुना दूध पी लें । इतनी इतनी मात्रा दिन में तीन बार लें बार लें । पूर्णत: पीड़ा दूर होगी ।
* पेशाब में तीव्र जलन या चीनक हो तो एक गिलास ठंडे पानी में चीनी, बुरा या खांड का शरबत बनाकर पिएँ, तुरंत आराम मिलेगा ।
* नाभि के चारो ओर देसी घी में सोंठ का पाउडर मिलाकर मलें या लेप करें ।


बच्चों में बुखार : बच्चों के रोग

बच्चों में बुखार :

       छोटे बच्चों को बुखार बहुत प्रभावित करता है | यह वायरस वाले इन्फेक्शन से होता है | परंतु जब बालक मानसिक रूप से परेशान होता है तो उसके शरीर का तापमान बढ़  जाता है | अधिक गर्मी होने या ज्यादा जोर से व् देर तक रोने से भी बच्चे के शरीर का तापमान बढ़ जाता है | ऐसे बुखार में कोई दवा देने की आवश्यकता नहीं होती | कपकपी लगकर बुखार चढ़ना मलेरिया या मूत्र प्रणाली में संक्रमण के कारन हो सकता है |



      बच्चों मे उपचार कैसे किया जाये :  

      जब बच्चे को बुखार 102 या 103 डिग्री हो तब उसे तीव्र बुखार माना जाता है | ऐसे बुखार में बच्चे को दौरे भी पड़ सकते है | बाँह और पाँव में झटके लगते है चेहरे का रंग पिला पड़ जाता है | परंतु झटके कुछ सेकंड के लिए ही होते है | इस दौरान शरीर ठंडे पानी से पोंछते रहने से बच्चे की स्थिति बिगड़ नहीं पाती |


  • यदि बच्चे को बुखार के दौरान ही दौरा पडे तो बच्चे के पेट के निचे तकिया लगाएं व उसे पेट के बल लिटा दें, क्योकिं दौरे के समय उल्टी आने से उल्टी का पानी छाती में जाने का भय रहता है जिससे साँस रुक सकती है |
  • डोक्टर के आने तक बच्चे के शरीर पर ठंडे पानी की पट्टीयां रखते रहें | कमीज ही पहनाये व् ऊपर से शरीर को चादर से ढक दें | इस दौरान उसे ठंडा या ताजा पानी अधिक मात्रा में पिलाए जिससे तापमान जल्दी कम होगा |
  • बार-बार तापमान नापते रहना ठीक नहीं है | जब बच्चे को तेज बुखार हो तो हर आधे घंटे बाद ही तापमान नापें | कम बुखार में दिन में 4 बार नियत समय पर तापमान लें | इसके बाद तुरंत शिशुओ के डोक्टर को दिखाना जरुरी है |

दांत निकलना घरेलु इलाज कैसे करे

दांत निकलना :
       दांत निकलना छोटे बड़े या बच्चे परिवार की जान होती है | बड़े बच्चे तो अपनी तकलिक बोल सकते है लेकिन छोटे बच्चे तो अपनी तकलिक बता भी नहीं सकते है | इसीलिए उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए |
दांत निकलते समय बच्चा अंगूठा मुट्ठी या जो भी चीज हाथ में आए उसे मुँह में डालने की कोशिश करता है | इसी स्थिति में शिशु के मसुढे को अपनी छोटी उंगली से हौले - हौले रगड़े | इस अवस्था में बच्चों को थोड़ी सख्त चीज चबाने के लिए देनी चाहिए | इससे बच्चे के मसूड़े मजबूत बनेंगे |



       
           दांत निकलते समय बच्चे को जो भी चीज मिलती है वह उसे मुँह में डाल लेता है, इसे समय में बच्चे को नुकीले खिलोने न दे | दांत आने पर बच्चे के भोजन में कैल्सियम और विटामिन डी की मात्रा भरपूर होनी चाहिए क्योकि ये दोनों तत्व स्थायी दातों के निर्माण के लिए बहुत ही आवश्यक है |

         दांत निकलते समय क्या इस्तेमाल कर सकते है -
  • कच्चे आँवले या हल्दी का रस यदि बच्चे के मसूड़े पर मल दिया जाए तो दांत आसानी से निकल आती है |
  • अनार के रस में तुलसी का रस ममिलाकर बच्चों को चटाने से उन्हें दांत निकलते समय ज्यादा परेशानी नहीं होती |
  • बच्चे को दो वर्ष की आयु तक सभी दांत निकल आते हैं | इसलिए सभी दांत आने पर बच्चे को चबाने वाला भोजन जैसे फल, गाजर, मुली जैसी सब्जिया खिलानी चाहिए |
  • दांत निकलने के दौरान आँस्टो कैल्सियम सिरप या ग्राइप शिशुओं के लिए उत्तम टॉनिक है | इसे दांत निकलने के दौरान पिलाया जाता है | 

Monday, August 24, 2015

पेट का दर्द: लक्षण और घरेलू इलाज

पेट का दर्द :
        पेट दर्द कहने - सुनने या देखने में छोटा सा लगने वाला शब्द है, किंतु यह जटिल बिमारियों का जनक भी हो सकता है । पेट दर्द कई तरह के होते हैं
        सुप्त यह दर्द पेट के आंतरिक हिस्से में होता है | यह दर्द कभी तेज तो कभी धीमा हो जाता है | रोगी को एसा लगता है जैसे पेट के अंदर कोई रह रहकर सुइयाँ चुभो रहा है | सुप्त पेट दर्द कई तरह की बीमारियों के लिए खतरे की घंटी है; जैसे यदि पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द का एहसास होता है तो यह जिगर आमाशय, पित्त की थैली या अग्न्याशय आदि में से किसी अंग में कोई गड़बड़ी ओर इशारा करता है | यदि दर्द पेट के बीचोबीच महसूस होता है तो यह छोटी आंत, अपेंडिक्स या बड़ी आंत में से किसी में दिक्कत की ओर इशारा करता है | दर्द यदि पेट के निचले हिस्से में होता है तो यह बड़ी आंत, मलाशय, गुरदे, मुत्रवाहिनी, मूत्राशय स्त्रियों के गर्भाशय व डिबाशय आदि में से किसी अंग में दिक्कत की ओर इशारा करता है |  
        पेट दर्द पेप्टिक अल्सर में बहुत ही असहनीय दर्द होता है | साथ ही जलन एव भारीपन की शिकायत भी रहती है | पित्त की थैली में पथरी रहने पर ऐसा दर्द होता है, मनो पूरा बदन छोटे से गोले में सिकुड़ा जा रहा हो | अग्न्याशय की सुजन में दर्द इतना तेज होता है की रोगी घबरा जाता है | अपेंडिसाटीस में भी दर्द अत्यंत तीव्र होता है | गुरदे की पथरी का दर्द कमर के निचले हिस्से से आरंभ होकर आगे की तरफ मूत्र मार्ग की ओर जाता है | इससे रोगी काफी तडपता है | आंत के अवरोध वाले पेट दर्द में रोगी को उल्टियाँ होती है | मल रुक जाता है | गैस पास नहीं होती | यह मरोड़ जैसा होता है |  
       पेट का दर्द अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि शरीर की कई दूसरी बिमारियों को व्यक्त करने का जरिया मात्र है, पेट दर्द का उपचार भी इस बात पर निर्भर करता है की रोगी की मूल बीमारी क्या है ?

  • यदि पेटदर्द मरोड़ के साथ होता है तो पुराने आम की गुठली के चूर्ण में कला नमक मिलाकर मटठा या  ताजा पानी के साथ सेवन करें दर्द उठना बिलकुल ठीक हो जाएगा |
  • पेट में गैस बन रही है या अपान वायु नहीं घूम रही है तो आधा चम्मच अजवाइन हथेली पर रगड़कर उसमे काला नमक तथा हिंग डालकर गुनगुने पानी से फंकी करें | 
  • अफारा के कारन पेट दर्द है तो घी देसी में पीसी सोंफ तथा हिंग मिलाकर गरम करें फिर इससे नाभि के चारों ओर हलकी मालिश करें |
  • एक गिलास पानी में एक नीबू का रस तथा आधा चम्मच खाने वाला सोडा डालकर तुरंत पि जाएँ इससे पेटदर्द में आराम मिलेगा |
  • सामान्य पेट दर्द निम्न चूर्ण घर में बनाकर रख ले और आधा चम्मच चूर्ण ताजा पानी के साथ सेवन करें | अजवाइन तथा जीरा बराबर मात्रा में लेकर तवे  पर आधा भुन लें | इससे बराबर सोंठ डालकर पिस लें अब इसमें बराबर मात्रा में सेंधा या काला नमक मिलाकर शीशी में भरकर रख लें |                                               


Thursday, August 13, 2015

कान का रोग : सावधानियाँ

कान के दर्द कैसे होता है :

                   कान का दर्द होना आम बात है | अह कई कारणों से होता है | चोट लगने पे या कण में फुंसी होने पर कान  में असहनीय पीड़ा होता है | और कुस भी अच्छा नहीं लगता | न लेटने पर चैन आता और न बैठने पर |कान में कुपित वायु प्रवेस कर कान दर्द का कारण बन जाती है |



          सावधान : कान  में दर्द या खुजली होने पर इसमें पेंसिल या तीली आदि भूलकर भी न डालें | कान की  वैक्स या धूल - मिट्टी निकालनी हो तो रुई लगी सलाई उपयोग में लाएँ | कान में पानी कदापि न भरें |
     
        उपचार (इलाज ) :
१) बच्चों या बड़ों के कान में दर्द हो तो प्याज के रस को सरसों के तेल में पकाकर ठंडा होने पर कान में दो बूंद डालकर रूई लगा दें, दर्द में आराम मिलेगा |
२) कान में अगर फुंसी हो तो लहसुन की कलियाँ छीलकर उन्हें सरसों के तेल में खूब पकाएँ | इस तेल को शीशी में भरकर रख लें और सुबह-शाम दो-दो बूंद कान में डालें | इससे कान दर्द में बड़ा आराम मिलता है |
३) प्रसूता माँ का दूध कच्चे के कान में डालें | इससे बच्चों के कान का दर्द दूर होता है  |
४) नीम की निबोली या पत्तों का रस सरसों के तेल में पकाकर रख लें | बच्चों-बूढ़े किसी के कान दर्द होने पर दो-दो बूंद कान में डालें |
५) फुंसी होने पर नीम या बकायन का तेल गुनगुना करके कान में डाल सकते है | इससे फुंसी का घाव जल्दी भरता है और दर्द में आराम मिलता हैं |
६) आवश्यक समजें तो कोई भी आयुर्वेदिक ईयर-ड्राप कान में डाल सकते हैं | बच्चों के मामले में विशेष सावधानी बरतें |
७) तुलसी दल मसलकर रस निकाल लें | कान दर्द की शिकायत होने पर दो बूंद कान में डालें,तुरंत आराम मिलेगा |
८) सफेद प्याज का रस गुनगुना करके कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है, अगर घाव या फुंसी है तो घाव भी भर जाता है |
९) जिनको लगातार नजला या जुकाम रहता है, उन्हें कान दर्द की शिकायत आम बात है, अत: जुकाम होने पर इसका तुरंत इलाज करें |

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