Wednesday, November 25, 2015

दम की खाँसी और दमा के रोग

दमावाली खाँसी :
         दमावाली खाँसी का कारन नि:श्वास की समस्या हो जाना ही दमा है | इसमें न तो सुगमता से शुद्र वायु ओंक्सिजन अंदर ली जा सकती है तथा न ही अंदर की कार्बन डाइओंक्साइड बाहर निकल पाती है |
           दमवाली खाँसी आधी रात को दमा अधिक तेज होता है | रोगी न तो चैन की साँस ले पाता है न ही ठीक से बैठ सकता है | कई बार वह छटपटाते, खाँसते बैठे पूरी रात काट देता है | थक हारकर नींद ले पाता है | बलगम निकलने के साथ कुछ चैन पाता है | आचार, तैलीय खाध पधार्थ ठंडे पेय पधार्थ दही, दूध ,चावल आलू, शराब, या धुम्रपान इस रोग को बढ़ाते है |
          घरेलू नुस्खे इसमें बड़े कारगर है - 
  • दूध में खजूर या छुहारा, किशमिश या मुनक्का उबालकर देने से रोग शांत होता है | रक्त शुद्र होता है नया रक्त तथा इसमें लाल रकतकण निर्मित होते हैं | बेसन की रोटी या काले चने व आटे की रोटी गरम घी के साथ खाने से ऊपर से पानी न पीने से काफी लाभ मिलता है | 
  • देसी घी दो चम्मच, चार साबुत कलि मिर्च देशी खांड दो चम्मच सबको गरम कर रोगी को खाने को दें | ऊपर से पानी न पिएँ | शातावर का चूर्ण दूध के साथ लेने से बहुत जल्दी आराम मिलता है | ऐसे रोगी के लिए मीठी पकी खुबानी संतरा, मौसबी, पका पपीता, कच्चे पपीते की सब्जी, अनार, नीबू आदि फायदेमंद रहते है |
  • दम उखड़ने के समय परात या टब में गरम पानी भरें और उसमे पैर डालकर अपनी श्वास सामान्य करें |हरी सब्जियाँ फल, मूली, गाजर, पत्तागोभी तथा पालक लाभदायक हैं |दमा की तीव्रता को कम करने के लिए इनहेलर इस्तेमाल कर सकते हैं |
  • ठंडी तथा तली चीजों से परहेज करें, इससे दमा जल्दी-जल्दी परेशां नहीं करता है | 
क्या है दमा के रोग -
         दमा के रोगियों में इस बीमारी की शिकायत एकदम से उत्पन्न नहीं हो जाती | जब मनुष्य जन्म लेता है, उसके रक्त में कुछ ऐसे कण होते है, जो बाहरी वातावरण के संक्रमण से फलते फूलते हैं | कई लोगों में तो इनके लक्ष्ण बचपन में ही प्रकट हो जाते है और कइयो में १७-१८ वर्ष की आयु के बाद या फिर ३५-३६ वर्ष की आयु के बाद |
        एलर्जी रोगी की नाड़ियों में सुजन हो जाती है और सुजन के कारण नाडीयां तंग हो जाती है, इसका प्रमुख कारण होता है एलर्जी | वातावरण की धुल मिटटी में कुछ विशेष प्रकार के कीड़े आदि होते है, हमारी साँस द्रारा इनके अंदर चले जाने के कारण यह एलर्जी पैदा होती है | मादा कॉकरोचों के पंख,फूलो के परागकणों का हवा में उड़ना, अनाज की डस्ट, फंगस का सुखकर उड़ना आदि में ऐसे कण हैं जो हमारी नंगी आँखे को नजर नहीं आते |
       रोग के लक्ष्ण में दमा के रोगियों को जल्दी साँस चढ़ जाती है, रात के समय अधिक साँस चढ़ती है | पर्याप्त नींद न ले पाने के कारण चेहरा मलिन अशक्त सीढियाँ, बस, रेल आदि में चढ़ने से ही साँस फुल जाता है | बिगड़े हुए दमा वाले मरीजो में स्थिति और भी बदतर होती है | दमा के रोगी को हर समय खाँसी आती रहती है | दमा का कारण एक और भी है, जो बीडी सिगरेट तथा चरस गांजा आदि का नशा करते है, उनकी साँस की नाड़ियाँ संकुचित हो जाती हैं तथा धुएँ के कारण फेफड़ो में फंगस जैम जाती है, जिससे फेफड़ो के छिद्र बंध हो जाती हैं | इस तरह वे भी दमा के रोगी बन जाते है |
       दमा का उपचार :-

  • दमा का दौरा शुरू होने पर रोगी को गरम पानी के टब में खड़ा करें इससे श्वास सामान्य होने में राहत मिलेगी | महुआ के फुल, लौंग, काली मिर्च सोंठ तथा इलायची का काढ़ा सुबह शाम बनाकर सेवन करें | 
  • दमा के रोगी को प्रतिदिन भाप की सिंकाई या बफार अवश्य लेना चाहिए, इससे श्वास नलिका साफ़ हो जाती है और संकुचन दूर होता हैं | दमा के साथ खाँसी हो तो कासामृत हर्बल सिरप सुबह शाम एक-एक चम्मच लें |
  • दमा के रोगी ढीले और आरामदायक कपडे पहने | रोगी का कमरा हवादार होना चाहिए वहा सीलन नहीं होनी चाहिए | दमा के रोगी अदरक, लौंग, कालीमिर्च तथा लसुड़े के पत्तों का काढ़ा बनाकर चाय के स्थान पर सेवन करें, तो दमा का दौरा नहीं पड़ता |
  • रोगी रात को सोते समय अपने सिने पर कोई कपडा, तौलिया,शाल आदि रखकर सोए | इससे सिने में गर्माहट बनी रहती है और श्वास नहीं फूलता | दमा के रोगी बारह महीने तथा रात्रि में सोने से पहले गरम पानी से गरारे अवश्य करें | साथ ही दो-चार घूंट गरम पानी पिएँ भी, इससे दमा में बहुत आराम मिलता है |
  • ठंडी तथा बादी वाली चीजें - आइसक्रीम, दही, चावल, उड़त की दाल रात में खीरा आदि का सेवन न करें | दमा के रोगी उठकर लंबी-लंबी साँस खिंचकर प्राणायाम करे, इससे रोग में बहुत आराम मिलता है |

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