छोटी माता और खसरा :
यह भी चेचक की भाँती एक संक्रामण रोग है किंतु चेचक जैसे भयंकर नहीं होता है | छोटी आयु के बच्चों को यह रोग अक्सर हो जाता है | इसका संप्राप्ति काल १२ से १९ दिन तक होता है तथा संक्रामण काल ३ सप्ताह तक |
रोग के लक्षण परिचर्या और बचाव के उपाय -
यह रोग का संप्राप्ति काल ७ से १४ दिन तक होता है तथा संक्रामक काल ३ सप्ताह तक होता है |
रोग के लक्षण परिचर्या और बचाव के उपाय -
यह भी चेचक की भाँती एक संक्रामण रोग है किंतु चेचक जैसे भयंकर नहीं होता है | छोटी आयु के बच्चों को यह रोग अक्सर हो जाता है | इसका संप्राप्ति काल १२ से १९ दिन तक होता है तथा संक्रामण काल ३ सप्ताह तक |
- हलके ताप के पश्चात् दाने पर दाने निकलते है | दाने फ़ैल जाते है तथा धीरे-धीरे फुटकर सूख जाते है | ६ या ७ दिन में पपड़ियाँ सुखकर गिर जाती हैं |
- रोगी को अलग कमरे में रखना और आराम देना चाहिए | पर्याप्त जल और हलका सादा आहार देना चाहिए | त्वचा को नरम रखने के लिए जैतून का तेल या वैसलीन लगानी चाहिए |
- स्वस्थ व्यक्ति को रोगी के संपर्क से बचाना चाहिए | रोगी की वस्तुओं का विसंक्रमण कर देना चाहिए |
यह रोग का संप्राप्ति काल ७ से १४ दिन तक होता है तथा संक्रामक काल ३ सप्ताह तक होता है |
रोग के लक्षण परिचर्या और बचाव के उपाय -
- यह रोग जुकाम, खाँसी तथा ज्वर से आरंभ होता है | तत्पश्चात माथे तथा सारी देह पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं ये दाने तीन दिन बाद दिखाई देने लगते है |
- दो-तीन दिन में धीरे-धीरे रोग के सब लक्षण समाप्त हो जाते है | रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए | रोगी को हवा के झोंकों और ठंड लगने से बचाना चाहिए क्योंकि इस रोग के बाद निमोनिया होने का डर रहता है |
- आहार में फलों का रस हरी सब्जी तथा हलकी चीजें देनी चाहिए | पिने को हलका गरम जल देना अधिक अच्छा है |
- अच्छा होने के बाद रोगी को कुछ दिन आराम करना आवश्यक है क्योंकि यह रोग कमजोर पैदा करता है |
- इसके कीटाणु वायु या संपर्क द्वारा फैलते हैं | रोगी व्यक्ति के संपर्क से बच्चों को बचाना चाहिए | एक बार खसरा होने के बाद रोगी में स्वाभाविक रोग क्षमता उत्पन्ना हो जाती है | इसके टीके नहीं होते हैं |