पोलियो जानकारी :
पोलियो की बिमारी एक वायरस के द्रारा फेल जाती है | वायरल एक बहुत ही सुक्ष्म जिव होता है | पोलियो क्या है यह आम लोगों को समझ में नहीं आता है । यह दो बूंद जिंदगी के विज्ञापन तो हम सबको अच्छे लगते है । चलिए तो इसे ही जानते है । पोलियो नफेंटाइल पैरालिसिस या एक्यूट एंटिरीयल पोलियोमाइलिटीस का दुसरा नाम है | यह महामारी में होता है लेकिन हर समय मौजूद रहता है | हालांकि यह अक्सर बच्चों को अपना शिकार बनाता है | पोलियो बड़ी संख्या में लोगों को होता है और यह बीमारी किसी को भी हो सकता है |
पोलियो अलग-अलग किस्म के वायरसों से होता है | वायरस उस फ़िल्टर को भी पार कर जाता है जो बैक्टीरिया को भी रोक लेता है | वायरस जीवित कोशिका में ही जीवित रहता है | पोलियो किसी भी वायरस के जिस्म में प्रवेश कर सकता है | यह नर्व ब्लड के जरिए या स्पाइनल कोर्ड और ब्रेन तक पहुँच जाता है | इस तरह स्पईनल कोर्ड के ग्रे मैटर की कोशिकाओं में उसका विकास होने लगता है | जब इन नर्व कोशिकाओं पर सुजन आ जाती है और वह बीमारी हो जाती है | जिन में मांसपेशियाँ को यह नियंत्रित करती है वह काम बंद कर देती हैं | इस तरह उन पर फालिज गिर जाता है | अगर नर्व ठीक हो जाएँ तो मांसपेशियाँ फिर काम कर सकती हैं | लेकिन अगर वायरल नर्व कोशिकाओं को मार देता है तो इन नर्व से जुडी मांसपेशियाँ हमेशा के लिए अपंग हो जाती हैं | पोलियो मुख्य रूप से छोटे बच्चों को जिनकी उम्र 1 वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है | ज्यादातर बच्चों को अधिक प्रभावित करता है | यह रोग मुख्य रूप से एक प्रकार के वायरस के कारण होता है जो की नवजात शिशुओं या 5 वर्ष तक के बच्चों के शरीर में प्रवेश कर जाता है और उनके पैरों को कार्य करने योग्य नहीं छोड़ता | लेकिन यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है | पोलियो वायरल द्वारा उत्पन्न संक्रमण है जो एक व्यक्ति से दुसरे में फैलता है यह अत्यंत संक्रमण होता है | यह शरीर में मुंह द्वारा प्रविष्ट होता है और आँतों में वृद्धी करता है | यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिसमे लकवा ही सकता है | यां मुख्य: पांच वर्ष से छोटे बच्चों में प्रभाव डालता है | इसे पोलियो, बच्चों का लकवा और पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम भी कहा जाता है | इसमें आक्रांत मांसपेशियाँ स्थायी रूप से पक्षघातग्रस्त हो जाती है | इस रोग के मृदु आक्रमण के अंतर्गत रीढ़ की हड्डी से या एक तरफ शरीर का झुकाव हो जाता है जिसे पार्श्वकुब्जता कहते है या आगे की तरफ झुकाव हो जाता है जिसे कुब्जता कहते हैं | आक्रांत भाग की हड्डियाँ सुचारू सूप से नहीं बढ़तीं तथा हाथ पैर की हड्डियां टेढ़ी हो जाती है | मांसपेशियाँ अंत में अत्यधिक कमजोर हो जाती हैं | यह वायरस बच्चों में विकलांगता पैदा कर देता है | इस रोग से ग्रस्त बच्चे खड़े होकर नहीं चल पाते और वे अपने हाथ से भी कार्य करने में भी असमर्थ हो जाते हैं | यह मुख्य रूप से बच्चों को ही अपना शिकार बनाता है और इसलिए इसे शिशुओं का लकवा या बाल पक्षाघात भी कहा जाता है |
पोलियो के उपचार और कारण :-
पोलियो की नियमित्त एक प्रकार की टिका ( vaccine ) का आविष्कार किया है जिसका अंत: पेशी इंजेक्शन के रूप में प्रयोग करते हैं | अन्य उपचार के अंतर्गत खाद्य एवं पेय पधार्थो को माक्खियों एवं इसी प्रकार के अन्य जीवों से दूर रखना चाहिए और इसके लिए D.D.T. का प्रयोग अत्यंत लाभकारी है | स्कूल में तथा बोर्डिग हाउस में अधिकतर बच्चे आक्रांत होते है इसके लिए उनका किसी भी प्रकार से प्रुथक्करण आवश्यक है | रोग ग्रस्त बालक को ज्वर उतरने के बाद कम से कम तीन सप्ताह तक अलग रखना चाहिए | उसके मल मूत्र तथा शरीर से निकले अन्य उपसर्ग की सफाई रखना चाहिए | अन्य ओषधिजन्य उपचार के लिए किसी योग्य चिकित्सक की राय लेना उत्तम है | पोलियो के जो मुख्य रूप से वायरस के कारण फैलता है | इस वायरस को विज्ञान की भाषा पाउलिवाइरस के नाम से जाना जाता है | ज्यादातर वायरस युक्त भोजन के सेवन से यह रोग होता है | दूषित भोजन खाने से यह वायरस शरीर में सिर तक तक पहुँच जाता है जिसके कारण सिर की कोशिकायें नष्ट होने लगती हैं | यह वायरस श्वास तंत्र से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है | यह वायरस स्पाइनल कोर्ड पर संक्रमण करके वहां पर सुजन पैदा कर देता है | इस सुजन के कारण बच्चे के हाथ और पैर कार्य करना बंध कर देते है | इसके अलावा गर्भवती महिला को यदि उचित प्रोटीन युक्त भोजन नहीं मिलता तो उसके बच्चे को भी पोलियो हो सकता है |
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