Friday, January 13, 2017

मकर संक्रांति क्या है और इस दिन क्यों पतंग उड़ाते है ?

मकर संक्रांति :

         मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है इसलिए मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते है | भारत में प्रतिवर्ष कई तरह के त्यौहार मनाएँ जाते हैं और उन त्योहारों के संबंध में कई तरह की मान्यताएं भी प्रचलित होती है | जैसे दिवाली पर पटाखें जलाना, तो होली पर रंग खेलना | ठीक इसी तरह से मकर संक्रांति पर भी पतंग उड़ाई जाती है | हिन्दू धर्मं में माह को दो पक्षों में बाँटा गया है | १. कृष्ण पक्ष और २. शुक्ल पक्ष | ठीक इसी तरह से वर्ष को भी दो अयनों में बाँटा गया है | उत्तरायण और दक्षिणायण | यदि दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पूर्ण हो जाता है |



           मकर संक्रांति पौष मास में जब सूर्य धनु राशी को छोड़कर मकर राशी राशी में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति त्यौहार मनाया जाता है और सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है | यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है | वैसे तो यह त्यौहार जनवरी माह की 14 तारीख को मनाया जाता है लेकिन कभी-कभी यह त्यौहार 12, 13, 14, या 15 जनवरी में से किसी एक दिन ही मकर राशि में प्रवेश करता हैं | उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतिक माना जाता है | इसलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्रधा, अर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों को विशेष महत्व दिया जाता है | हमारे देश में मकर संक्रांति के पर्व को कई नामों से जाना जाता है | पंजाब और जम्मूकश्मीर में इसे लोहड़ी के नाम से बहुत ही बड़े पैमाने पर जाना जाता है | लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति के एक दिन पर्व मनाया जाता है | जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं और स्त्री तथा पुरुष सज-धजकर नए-नए वस्त्र पहनकर एकत्रित होकर उस जलते हुए अलाव के चारों और भांगड़ा नृत्य करते हैं और अग्नि को मेवा, तिल, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं | संक्रांति यानि सम्यक क्रांति इस नामकरण के नाते तो मकर संक्रांति सम्यक क्रांति का दिन है । एक तरह से सकारात्मक बदलाव के लिए संकल्पित होने का दिन । ज्योतिष व नक्षत्र विज्ञान के गणित के मुताबिक कहें तो मकर संक्रांति ही वह दिन है जब सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है और एक महीने मकर राशि में रहता हैं । तत्पश्चात सूर्य अगले पांच माह कुंभ, मीन, मेष, वृक्ष, और मिथुन राशि में रहता है । इसी कारण मकर संक्रांति पर्व का एक नाम उत्तरायणी भी है ।

 मकर संक्रांति के दिन क्यों खातें है तिल और गुड :-

          भारत में हर त्यौहार पर विशेष पकवान बनाने व खाने की परंपराएं भी प्रचलित हैं | श्रुंखला में मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से तिल व गुड के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है | कहीं पर तिल व गुड के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाकर तिल व गुड का सेवन किया जाता है | तिल व गुड की जगह भी लोग खूब पसंद करते है लेकिन मकर संक्रांति के पर्व पर तिल व गुड का ही सेवन क्यों किया करते है इसके पिसे भी वैज्ञानिक आधार है | सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है तब तिल व गुड के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं, क्योंकि तिल में तेल की प्रचुरता रहता है जिसका सेवन करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में तेल पहुंचता है और जो हमारे शरीर को गर्माहट देता है |  इसी प्रकार गुड की तासीर भी गर्म होती है | तिल व गुड को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं वह सर्दी के मौसम में हमारे शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं | यही कारण है की मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं |

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