Thursday, March 3, 2016

महाशिवरात्रि क्यों मनाया जाता है |

हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है :
         महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है | यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है | मानते है की सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतार हुवा था | प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्माण्ड को तीसरे आँख की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं | इसलिए इसे   महाशिवरात्रि  कहा गया था | कई स्थानों पर यह भी माना जाता है की इसी दिन भगवान शिव का विवाह हो गया है | तीनों भुवनो की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरा को अर्धागिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते है | उनका रूप बड़ा अजीब है | शरीर पर मसानों की भस्म गले में सर्पो का हार कंठ में विष, जटाओ में जगत- तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है | बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं |
        एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है जिससे मृत्युलोग के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते है ?  - उत्तर में शिवजी ने पार्वती को `शिवरात्रि` के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाया था | एक गाव में एक शिकारी रहता था | वो हर रोज पशुओ की हत्या करके वह अपने कुटुंब को पाल रहा था | वह एक साहूकार का ऋणी थे लेकिन उसका ऋण समय पर न चूका | क्रोधित साहूकार ने शिकार को शिवमठ में बंदी बना लिया | संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी | शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक सुन रहा था | संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात किया था | शिकारी अगले दिन सारा ऋण लोटा देने का वचन देकर बंधन से छुट गया | अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकल पड़ा लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था | शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल - वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा | बेल वृक्ष के निचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुवा था शिकारी को उसका पता न चला | पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वे संयोग से शिवलिंग पर गिर गया था | इस प्रकार दिनभर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिलपत्र भी चढ़ गए |
        एक रात्रि बित जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पिने पहुची | शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़कर ज्यों ही प्रत्यंचा खिचीं मृगी बोली `में गर्भिणी हूँ | शीघ्र ही प्रसव करुँगी | तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है | में बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाउंगी तब मार लेना | शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में गुप्त हो गई | कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली | शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा | समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया | तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया हे पारधी मै थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूँ | कामातुर विरहिणी हूँ | अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं | मै अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाउगी | शिकारी ने उसे भी जाने दिया | दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका | वह चिंता में पड़ गया | रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था तभी एक एनी मृगी अपने बचों के साथ उधर से निकली | शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था | उसने धनुस पर तीर चढाने में देर नहीं लगाई | वह तीर छोड़ने ही वाला था तभी मृगी बोली हे पारधी मै इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आउंगी इस समय मुझे मत मारो | शिकारी हँसा और बोला सामने आए शिकार को छोड़ दू में एसा मुर्ख नहीं । इससे पहले मैं दौ बार अपना शिकार खो चूका हु | मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे | उत्तर में मृगी ने फिर कहा जैसे तुम्हे अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी है | इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर में थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं | हे पारधी मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ |
        मृगी का दिन स्वर सुनकर को उस पर दया आ गई | उसने उस मृगी को भी जाने दिया | शिकार के आभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ तोड़कर निचे फेकता जा रहा था | पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया | शिकारी ने सोच लिया की इसका शिकार वह अवश्य करेगा | शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, है पारधी भाई यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तिन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दू: ख न सहना पड़े | मै उन मृगियों का पति हूँ | यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो | मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाउगा | मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया उसने सारी कथा मृग को सुना दी तब मृग ने कहा मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्र होकर गई है मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी | अत: जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है वैसे ही मुझे भी जाने दो | मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ | उपवास रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हदय निर्मल हो गया था | उसमे भगवत शक्ति का वास हो गया था | धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छुट गया | भगवन शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हदय कारुणिक भावों से भर गया | वह अपने अतीत के कर्मो को याद करके पश्चातात की ज्वाला में जलने लगा |
      थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया ताकि वह उनका शिकार कर सके किन्तु जंगली पशुओ की ऐसी सत्यता सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभाव देखकर शिकार को बड़ी ग्लानी हुई | उसके नेत्रों से आंसुओ की झड़ी लग गई | उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हदय को जिव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया | देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे | घटना की परिणिति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए |

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