Tuesday, January 12, 2016

योगासन के विधि : वज्रासन भाग ३

योगासन : वज्रासन 
       वज्रासन में पाचनशक्ति, वीर्य शक्ति तथा स्नायुशक्ति देने वाला होने से यह आसन वज्रासन कहा जाता है | बिछे हुए आसन पर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर दोनों एडिओं पर बैठे जाएँ | पैर के दोनों अंगूठे परस्पर लगे रहें | पैर के तलुवों के ऊपर नितम्ब रहें | कमर और पीठ बिलकुल सीधी रहे, दोनों हाथ को कुहनियों से मोड़े बिना घुटने पर रख दें | हथेलियाँ निचे की और रहें, दृष्टि सामने स्थिर कर दें |


        पाँच मिनट से लेकर १/२ घंटे तक वज्रासन का अभ्यास कर सकते हैं |
वज्रासन के लाभ  : -


  • वज्रासन के अभ्यास से शरीर का मध्य भाग सीधा रहता है | श्वास की गति मंद पड़ने से वायु बढती है | आँखों की ज्योति तेज होती है | वज्रनाडी अर्थात विर्यधारा नाडी मजबूत होती है | वीर्य की उध्र्वगति होने से शरीर वज्र जैसा बनता है |  
  • मन की चंचलता दूर होकर व्यक्ति स्थिर बुद्धिवाला बनता है | शरीर में रक्ताभिसरण ठीक से होकर शरीर निरोगी एवं सुन्दर बनाता है | 
  • भोजन के बाद इस आसन में बैठने से पाचनशक्ति तेज होती है भोजन जल्दी हजम होता है, पेट की वायु का नाश होता है | कब्ज दूर होकर पेट के तमाम रोग नष्ट होते हैं | पोण्डुरोग से मुक्ति मिलती है | रीढ़, कमर, जाँघ, घुटने और पैरो में शक्ति बढती है | कमर और पैर का वायु रोग दूर होता है | स्मरण शक्ति में वृद्धी होती है |
  • स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता जैसे अनेकों रोग दूर होते है | शुक्रदोष, विर्यदोश, घुटनों का दर्द आदि का नाश होता है | स्नायु पुष्ट होते हैं | स्फूर्ति बढ़ाने के लिए एवं मानसिक निराशा दूर करने के लिए यह आसन उपयोगी है | ध्यान के लिए भी यह आसन उत्तम है |

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